लोकसभा और विधानसभा चुनाव के समय नेताओं को विस्थापितों की याद जरूर आती है और हक दिलाने के दावे किए जाते हैं।
भाखड़ा बांध से बनी गोबिंद सागर झील से बेघर हुए बिलासपुर के 205 गांवों के लोग आज भी राहत की राह देख रहे हैं। 63 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। लोगों को सुविधाओं के नाम पर केवल कोरे आश्वासन मिले। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के समय नेताओं को विस्थापितों की याद जरूर आती है और हक दिलाने के दावे किए जाते हैं। सत्ता मिलने पर विस्थापित भुला दिए जाते हैं। आज भी विस्थापितों का पूरी तरह बसाव नहीं हो पाया। 9 अगस्त 1961 को अस्तित्व में आई झील के लिए घर- जमीन छोड़ने वाले लोग हक के लिए भटक रहे हैं।
विस्थापित लोगों से बसा बिलासपुर देश का पहला ऐसा शहर है जो 999 साल की लीज पर है। सब कुछ होते हुए इन्हें शहर में अपनी ही संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिला। लीज के कारण बिजली-पानी के कनेक्शन के लिए नगर परिषद से एनओसी लेना पड़ता है। जरूरत पड़ने पर अपनी ही संपत्ति पर लोन के लिए अनुमति जरूरी है। करीब 41,000 एकड़ भूमि झील की भेंट चढ़ी और 11,777 परिवार बेघर हुए थे। केंद्र-प्रदेश सरकार ने उनके लिए नीति का निर्धारण नहीं किया। कुछ लोग आसपास के जंगलों में बस गए तो 3600 परिवारों को हरियाणा के सिरसा, हिसार और फरीदाबाद में जमीन दी गई।
205 गांवों के लोग आज भी ताक रहे राहत की राह
विस्थापितों को मिले मालिकाना हक
विस्थापित क्षेत्र का बंदोबस्त करवाया जाए और कब्जे वाली जमीन का विस्थापितों को मालिकाना हक प्रदान किया जाए। वहीं, बिजली-पानी के कनेक्शन बहाल किए जाएं। बच्चों को बीबीएमबी में नौकरी में आरक्षण प्रदान दिया जाए। -देशराज शर्मा, अध्यक्ष भाखड़ा विस्थापित समिति
भाजपा लाई थी 150 मीटर की पॉलिसी
भाखड़ा विस्थापितों को राहत भारतीय जनता पार्टी ने ही दी है। 150 मीटर पॉलिसी की राहत भी भाजपा सरकार के समय में ही दी गई। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के प्रयासों से ही यह पॉलिसी लाई गई है। सरकार विस्थापितों को राहत प्रदान करे। -त्रिलोक जमवाल, विधायक सदर बिलासपुर
सीएम से उठाया है मामला
भाखड़ा विस्थापितों का मिनी सेटलमेंट कांग्रेस सरकार ने कराया। काफी लोगों को प्लॉट नहीं मिल पाए हैं। इस मामला सीएम के समक्ष उठाया गया है। सरकार सुलझाने का प्रयास कर रही है। -बंबर ठाकुर, पूर्व विधायक, बिलासपुर
450 लोगों का बिजली-पानी जमीन को अवैध करार देकर किया गया बंद
विस्थापन के 12 वर्ष बाद 1973 में कुछ विस्थापितों को जमीन दी गई। निशानदेही सही तरीके से न होने के कारण लोग ने आशियाने तो बना लिए लेकिन जमीन कहीं और पर थी। इस कारण लोगों पर दोबारा विस्थापित की तलवार लटक गई। उनकी जमीन को अवैध करार देकर जिले भर में करीब 450 लोगों के बिजली-पानी के कनेक्शन काटे जा चुके हैं। शहर में भी करीब 246 लोगों को प्लॉट नहीं मिले। इन लोगों को प्लॉट के लिए जमीन तक चिह्नित नहीं हुई है। प्रशासन विस्थापितों को प्लॉट देने के लिए जगह भी चिह्नित नहीं कर पाया है।
मीटर पॉलिसी के तहत किया जा रहा नियमितीकरण
भाखड़ा विस्थापितों के अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए 2011 में 150 मीटर की पॉलिसी लागू की गई थी। इसके तहत आवेदन मांगे गए थे। शुरू में 2200 के करीब आवेदन गए थे, लेकिन इनमें से करीब 1800 को ही पात्र पाया गया था। उसके बाद शर्त के अनुसार नियमित करना शुरू कर दिया गया, लेकिन अभी तक नियमितीकरण का आंकड़ा 100 तक भी नहीं पहुंच पाया गया है।