ऐतिहासिक मुरली मनोहर मंदिर में भगवान श्री कृष्ण व राधा रानी को गुलाल लगा कर इस पर्व का विधिवत्त शुभारंभ किया जाता है।

राष्ट्र स्तरीय होली उत्सव सुजानपुर का इतिहास रियासतों के दौर से जुड़ा हुआ है। रियायतों के दौर के इस पर्व को मनाने के पीछे बेहद रोचक कहानी है। ऐतिहासिक मुरली मनोहर मंदिर में भगवान श्री कृष्ण व राधा रानी को गुलाल लगा कर इस पर्व का विधिवत्त शुभारंभ किया जाता है। इस पर्व को मनाने की परंपरा कटोच वंश ने शुरू की। कटोच वंश के शासक महाराजा संसार चंद ने लगभग 400 साल पहले स्वयं मुरली मनोहर मंदिर का निर्माण करवाया था। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में नतमस्तक होते हैं और भगवान श्री कृष्ण जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह मंदिर आज भी लोगों की आस्था का केंद्र बना है।
मंदिर की खासियत ये है कि यहां सैकड़ों साल पहले से ही श्री कृष्ण की मूर्ति पर बांसुरी विपरीत दिशा में पकड़ी गई है जिसका रहस्य बरकरार है। अकसर भगवान श्री कृष्ण के मंदिरों में बांसुरी को सीधी दिशा में पकड़े हुए देखा गया है, लेकिन हिमाचल के सुजानपुर टीहरा में स्थित मुरली मनोहर मंदिर के मंदिर में विपरीत यानि बाईं दिशा में बांसुरी पकड़ी गई है। रियासतों के दौर में राजा श्री कृष्ण और राधा रानी को गुलाल लगाकर ही सुजानपुर के होली मेले का शुभारंभ किया जाता था। महाराजा संसार की रानियां ऐतिहासिक मैदान में होली खेलती थीं। आज भी यह परंपरा इसी तरह से निभाई जा रही है। अब मुरली मनोहर मंदिर से ही विधिवत पूजा-अर्चना करके ही राष्ट्र स्तरीय होली का शुभा प्रदेश के मुख्यमंत्री की ओर से किया जाता है।
मुरली मनोहर मंदिर में मौजूद भगवान श्री कृष्ण बांसुरी बजाते हुए विपरीत दिशा में दिखाई देते हैं, जो कि अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए हैं। बांसुरी की दूसरी दिशा में पकड़ने के पीछे महाराजा संसार चंद के समय से एक दंत कथा जुड़ी हुई है। दंत कथा के अनुसार मुरली मनोहर मंदिर के अंदर श्री कृष्ण की मूर्ति की स्थापना की जा रही थी। महाराजा संसार चंद ने पुजारियों से श्री कृष्ण की ही मूर्ति स्थापित करने पर सवालिया निशान खड़े किए और सभी पुजारियों दंडित करने का भय भी दिखाया। इस पर पुजारी रात भर चिंता में रहे, लेकिन सुबह मंदिर के अंदर भगवान श्री कृष्ण के चमत्कार को देखकर दंग रह गए और देखा कि बांसुरी दूसरी दिशा में घूम गई थी।
एक लाख रुपये से हुआ मंदिर निर्माण
पुजारियों के साथ मंदिर पहुंचे राजा ने बांसुरी की विपरीत दिशा को देखकर इसे साक्षात भगवान श्री कृष्ण के मौजूद होने का सबूत माना। मंदिर के पुजारी रवि अवस्थी ने कहा कि मुरली मनोहर मंदिर को लखटकिया मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका निर्माण महाराजा संसार चंद के समय में एक लाख रुपये से करवाया गया था। मंदिर के अंदर बेहतरीन नकाशी की गई है। श्रद्धालुओं की मानें तो इस मंदिर में सच्चे मन से मन्नत मांगी जाए तो वह परी होती है।
आचार संहिता से राजनीति से दूर है मेला
चुनाव के चलते इस बार मेले में नेताओं की दूरी ही रहेगी। मेला पूरी तरह से प्रशासनिक रंग में रंगा हुआ नजर आ रहा है। मेले का आगाज मुख्यमंत्री द्वारा किया जाता है लेकिन आचार संहिता के चलते राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल मेले का आगाज करेंगे। इसके अलावा सांस्कृतिक संध्याओं में प्रशासनिक अधिकारियों को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया है।