# भाजपा की बगावत पर बिसात बिछा रही कांग्रेस, मंडी के गढ़ को बचाए रखना बड़ी चुनौती….

 छह सिटिंग विधायकों के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने और टिकट लेकर चुनावी रण में उतरने से चुनावी समीकरण बदल गए हैं।

हिमाचल प्रदेश में फूंक-फूंककर टिकट तय करने के पहाड़ को फांद रही कांग्रेस का चुनाव प्रचार अभी चुनावी डगर पर बेशक ज्यादा रफ्तार नहीं पकड़ पाया है, मगर इसके रणनीतिकार भाजपा में भितरघात का लाभ उठाने की बिसात  बिछा रहे हैं।  छह सिटिंग विधायकों के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने और टिकट लेकर चुनावी रण में उतरने से चुनावी समीकरण बदल गए हैं। कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में मंडी के गढ़ को बचाए रखना बड़ी चुनौती है तो अन्य सीटों पर भी इसे खाता खोलना है।

कांग्रेस भाजपा के तख्तापलट अभियान ध्वस्त करने के लिए उपचुनाव में भी पूरा दमखम दिखाने का प्रयास करेगी। अपनों के जख्मों से घायल कांग्रेस ज्यादा हमलावर रुख अपनाकर ही प्रतिष्ठा पर आए इस संकट से पार पा सकेगी। प्रदेश में कांग्रेस ने अभी तक एक भी टिकट घोषित नहीं किया है, जबकि भाजपा ने चारों लोकसभा सीटों और छह विधानसभा हलकों में प्रत्याशी घोषित कर प्रचार तेज कर दिया है।

इधर, पिछले कुछ समय तक रहस्यमय रहे हाॅलीलॉज ने भी आईने के सामने खड़े होकर अपनी रीढ़ सीधी कर ली है। होली के रंगों से गिले-शिकवे दूर होने का संदेश देते हुए जिस तरह से मुख्यमंत्री सुक्खू से मिलने पार्टी प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह और उनके बेटे मंत्री विक्रमादित्य सिंह ओकओवर गए, उससे दोनों खेमों के बीच आग में घी डालने वालों की बेचैनी बढ़ी है। चंडीगढ़ में हुई समन्वय समिति की बैठक में प्रतिभा सिंह को मंडी से चुनाव लड़ने को राजी कर किया गया है। अब टिकट घोषित होने की देरी है। इस सीट पर संगठन का खास फोकस रहने वाला है।

 यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह क्षेत्र होने के नाते उनकी प्रतिष्ठा का भी सवाल है, जो भाजपा के सत्ता में रहते हुए उनसे छिन गई थी। यहां से भाजपा ने अभिनेत्री कंगना रणौत को चुनाव में उतारा है, जिसे जिताने के लिए पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी बहुत जोर मारेगा। उधर, शिमला और कांगड़ा में भी सारे समीकरण देखे जा रहे हैं। भाजपा के बागियों को टिकट देने की संभावना और इसके नफे-नुकसान देखा रहा है। हमीरपुर सीट पर भी मंथन चल रहा है। मुख्यमंत्री सुक्खू प्रचार की मोर्चेबंदी संभालने से पहले तिरुपति गए हैं। आपदा और आर्थिक मदद की अनदेखी ही कांग्रेस के अस्त्र बनेंगे, ओपीएस बहाली, आयाराम गयाराम जैसे मुद्दे भी। 

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