जंगली-जानवर और बेसहारा पशु किसानों की फसलें उजाड़ रहे हैं। राज्य के किसानों के लिए पारंपरिक खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है।
हिमाचल के पानी से पंजाब और हरियाणा में फसलें लहलहा रही हैं और प्रदेश में 80 फीसदी खेती बारिश पर निर्भर है। जंगली-जानवर और बेसहारा पशु किसानों की फसलें उजाड़ रहे हैं। राज्य के किसानों के लिए पारंपरिक खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। सरकारी योजनाएं इतनी पेचीदा हैं कि किसान चाह कर भी इनका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। ऐसे में किसानों की आमदनी दोगुना कैसे होगी, यह बड़ा सवाल है।
उत्तर भारत की बड़ी नदियों का उद्गम स्थल होने के बावजूद प्रदेश में सिंचाई सुविधा नहीं मिल रही है। जंगली-जानवरों से फसलें बचाना भी बड़ी चुनौती है। बंदर, सूअर, नील गाय सहित कुछ पक्षी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। प्रदेश में लावारिस पशु भी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। प्रदेश में करीब 40,000 लावारिस पशु हैं
लाख मीट्रिक टन सब्जी उत्पादन पर भी एमएसपी की गारंटी नहीं
हिमाचल प्रदेश में हर साल करीब 20 लाख मीट्रिक टन सब्जी उत्पादन होता है, लेकिन सब्जियों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं है। सरकारी स्तर पर गेहूं और धान की खरीद बेहद कम होती है। 7 लाख मीट्रिक टन मक्की का उत्पादन होता है, मगर यह एमएसपी के दायरे में नहीं है। किसानों को अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ती है। महज 23 फसलों पर एमएसपी है।
9,96,000 पंजीकृत जोतें
प्रदेश में 9 लाख 96 हजार पंजीकृत जोतें राजस्व रिकॉर्ड में हैं। 63 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है। इसमें 86 फीसदी लघु और सीमांत किसान हैं, जिनके पास 5 बीघा से कम कृषि योग्य भूमि है। किसानों की ओर से खेती छोड़ने से पिछले 10 सालों में 75,000 हेक्टेयर भूमि बंजर हो गई है। खेती छोड़ने का मुख्य कारण मौसम की मार, जंगली जानवर और लावारिस पशु का नुकसान है।
बीज, खाद, दवाओं पर सब्सिडी बेहद कम
खेती की लागत वस्तुओं पर सरकारी सब्सिडी बेहद कम है। बाजार से महंगे दामों पर बीज, खाद और दवाएं खरीदना मजबूरी है। बाजारों में उत्पादों की जहां गुणवत्ता सही नहीं, वहीं कीमतें भी अधिक हैं। सरकार की ओर से मिलने वाला बीज समय से नहीं मिल पाता है।
हिमाचल में किसानों की आय बढ़ाने के लिए कलस्टर बनाए जा रहे हैं। हर ब्लॉक से 250 से 300 किसान परिवारों का चयन कर आर्गेनिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। किसानों के आर्गेनिक उत्पादों से अलग दाम तय किए जाएंगे। दूध के दामों में बढ़ोतरी की गई है। धनिया, मेथी, जीरा के अलावा मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाएगा। -प्रो. चंद्र कुमार, कृषि मंत्री
हिमाचल में पढ़े लिखे लोग कृषि कर रहे हैं। सरकार को कृषि लागत पर अनुदान के लिए नीति बनानी चाहिए। सीए स्टोर की सुविधा मिले। प्रोसेसिंग के लिए उद्योग लगें। जंगली-जानवरों और आवारा पशुओं की समस्या के समाधान के लिए नीति बननी चाहिए। एमएसपी की गारंटी मिलनी चाहिए। -कुलदीप सिंह तंवर, अध्यक्ष, किसान सभा
हिमाचल की खेती पहाड़ों के अनुकूल होनी चाहिए। पंजाब और हरियाणा का अनुसरण नहीं किया जा सकता। मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है। सरकार भी इसके लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। विश्वविद्यालयों में रिसर्च भी जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी चुनौती और पहाड़ी क्षेत्रों को ध्यान में रखकर होनी चाहिए। – देवेंद्र शर्मा, कृषि विशेषज्ञ