लोकतांत्रिक व्यवस्था में अगर जातीय समीकरणों के महत्त्व को देखते हुए राजनीतिक दल टिकट वितरण में भी जातीय समीकरणों को तरजीह देते हैं, तो विधानसभा क्षेत्र गगरेट एकमात्र ऐसा अपवाद है कि राजपूत बहुल इस विधानसभा क्षेत्र में टिकट वितरण का पैमाना जातीय समीकरण कम ही रहे हैं।
वर्ष 2012 से अनारक्षित श्रेणी में आए विधानसभा क्षेत्र गगरेट में बेशक भाजपा दो बार राजपूत चेहरे पर दाव खेल चुकी है, लेकिन कांग्रेस की पहली पसंद इस विधानसभा क्षेत्र में कभी भी राजपूत चेहरा नहीं रहा। वह भी तब जब विधानसभा क्षेत्र गगरेट में सबसे ज्यादा 38 प्रतिशत राजपूत आबादी है। जातीय समीकरण में 15 प्रतिशत से भी कम होने के बावजूद राजनीतिक दलों ने ब्राह्मण चेहरे पर ज्यादा दाव लगाया है।
वर्ष 2012 से पहले विधानसभा क्षेत्र गगरेट आरक्षित श्रेणी में रहा है। जाहिर है कि आरक्षित श्रेणी में होने के चलते यहां से राजनीतिक दलों का चेहरा भी इस वर्ग से रहा है। वर्ष 2012 में पहली बार अनारक्षित श्रेणी में आने के बाद से ही भाजपा व कांग्रेस की पहली पसंद ब्राह्मण चेहरे ही बनते आए हैं। वर्ष 2012 में भाजपा ने सुशील कालिया के रूप में यहां से ब्राह्मण चेहरा चुनाव मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने भी इसकी काट ब्राह्मण चेहरे के रूप में राकेश कालिया को चुनाव मैदान में उतार कर की। इस चुनाव में राकेश के रूप में कांग्रेस चुनाव जीतने में सफल रही। -एचडीएम
साल 2017 में भाजपा ने राजपूत नेता पर खेला था दांव
वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राजपूत चेहरे के रूप में राजेश ठाकुर को आगे किया तो सिटिंग विधायक होने के नाते कांग्रेस की ओर से राकेश कालिया ही टिकट हासिल करने में कामयाब रहे। इस चुनाव में राजेश ठाकुर की जीत हुई। वर्ष 2022 में सिटिंग विधायक के रूप में राजेश ठाकुर भाजपा की टिकट हासिल करने में कामयाब रहे तो कांग्रेस ने यहां से राकेश कालिया की टिकट काटकर फिर ब्राह्मण चेहरे पर विश्वास जताया और यहां से चैतन्य शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया।
अब भाजपा ने चैतन्य शर्मा मैदान में उतारे
इस बार हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस से बगाबत कर भाजपा में गए चैतन्य शर्मा को भाजपा ने अपना चेहरा बनाया है। यानी एक बार फिर से भाजपा ने राजपूत बहुल इस क्षेत्र में ब्राह्मण चेहरे पर विश्वास जताया है, लेकिन कांग्रेस की ओर से अभी तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया गया है।
विधानसभा क्षेत्र गगरेट में जातीय समीकरणों के अनुसार 38 प्रतिशत के करीब राजपूत हैं, तो ब्राह्मण 14 प्रतिशत के करीब हैं। अनुसूचित जाति की प्रतिशतता 27 प्रतिशत के करीब है, तो अन्य पिछड़ा वर्ग भी 11 से 14 प्रतिशत के करीब है। मुस्लिम समुदाय यहां पर नाममात्र है, तो अन्य में सात प्रतिशत जातियां आती हैं। बेशक अनारक्षित होने के चलते यहां से राजनीतिक दल अनुसूचित जाति का प्रत्याशी देने से परहेज करते हैं भले ही वे संख्या के लिहाज से 27 प्रतिशत हैं लेकिन करीब 14 प्रतिशत होने के बावजूद राजनीतिक दलों के लिए ब्राह्मण प्रत्याशी राजपूत समुदाय के मुकाबले अभी तक पहली पसंद बने हुए हैं।