संयुक्त किसान मंच ने लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों को बागवानों के मुद्दों पर बेरुखी को लेकर घेरने का फैसला लिया है।
हिमाचल के सबसे बड़े किसान-बागवान संगठन संयुक्त किसान मंच ने लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों को बागवानों के मुद्दों पर बेरुखी को लेकर घेरने का फैसला लिया है। संयुक्त किसान मंच का आरोप है कि प्रदेश के सांसदों ने संसद में सेब और गुठलीदार फल बागवानों का कोई मुद्दा नहीं उठाया। प्रत्याशी वोट मांगने आएंगे तो उनसे आयात शुल्क, जीएसटी और एमआईएस को लेकर सवाल पूछे जाएंगे।
7 मई को चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले संयुक्त किसान मंच शिमला में रणनीति बनाएगा। मंच ने सरकार से कश्मीर की तर्ज पर नैफेड के माध्यम से ए ग्रेड सेब 80 रुपये, बी ग्रेड 60 और सी ग्रेड 45 रुपये किलो खरीदने की मांग उठाई थी, जिसे केंद्र ने अनसुना कर दिया।विज्ञापन
आयात शुल्क
विदेशी सेब पर आयात शुल्क न बढ़ने के कारण भारी मात्रा में विदेशों से देश में सेब आयात हो रहा है जिससे हिमाचल के सेब उत्पादकों को नुकसान हो रहा है। इस साल कोल्ड स्टोर में रखे सेब को लागत से भी कम दाम मिलें है जिससे बागवानों को करोड़ों का नुकसान हुआ है। बागवान सरकार से लगातार आयात शुल्क 100 करने की मांग कर रहे हैं, आश्वासन के बावजूद केंद्र सरकार ने कोई राहत नहीं दी है।विज्ञापन
जीएसटी छूट
बागवान सेब और गुठलीदार फलों की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले कार्टन और बागवानी उपकरणों पर जीएसटी में छूट की मांग कर रहे हैं। कार्टन पर जीएसटी माफ करने के स्थान पर केंद्र सरकार ने इसे 6 फीसदी से बढ़ा कर 18 फीसदी कर दिया। बागवानी सहायक उपकरणों पर जीएसटी में छूट की मांग भी पूरी नहीं की गई। टॉफी बनाने वाली कंपनी को भी जीएसटी वापिस मिलता है लेकिन बागवानों को कार्टन पर चुकाया जीएसटी वापिस नहीं मिलता।विज्ञापन
एमआईएस
केंद्र सरकार देश में 19 उत्पादों पर मंडी मध्यस्थता योजना (एमआईएस) के तहत उपदान देती है। सी ग्रेड सेब 12.50 पैसे प्रति किलो खरीदा जा रहा है। हिमाचल में सेब पर 50 फीसदी उपदान प्रदेश सरकार और 50 फीसदी केंद्र सरकार वहन करता है। केंद्र सरकार ने साल 2022-23 में एमआईएस के लिए 1500 करोड़ के बजट का प्रावधान किया था। साल 2023-24 में एमआईएस के लिए 1 लाख रुपये टोकन बजट रखा गया है।
चार में से तीन सीटों पर बागवानों का प्रभाव
हिमाचल प्रदेश की चार में से तीन लोकसभा सीटों पर सेब उत्पादकों का सीधा प्रभाव है। शिमला और मंडी लोकसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग बागवानी से जुड़े हैं। कांगड़ा लोकसभा सीट के चंबा और धौलाधार में सेब बागवानी हो रही है। प्रदेश में करीब तीन लाख परिवार सेब की खेती से जुड़े हैं। राज्य की जीडीपी में सेब की खेती का 13 फीसदी से अधिक का योगदान है। प्रदेश में सेब की 5000 करोड़ से अधिक की आर्थिकी है और 70 फीसदी लोग कृषि-बागवानी से जुड़े हैं।
संयुक्त किसान मंच हिमाचल के 27 किसान-बागवान संगठनों का संयुक्त गैर-राजनीतिक मंच है। प्रदेश में सेब की पैकिंग के लिए टेलीस्कोपिक कार्टन के स्थान पर यूनिवर्सल कार्टन लागू करने और किलो के हिसाब से सेब बिक्री लागू करने में संयुक्त किसान मंच की बड़ी भूमिका रही है।
केंद्र सरकारों के पिछले चार कार्यकाल सेब व गुठलीदार फल बागवानों के लिए निराशाजनक रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी से कई बार सेब पर आयात शुल्क, बागवानी सहायक वस्तुओं पर जीएसटी छूट और एमआईएस में बढ़ोतरी मांग उठाई। पिछले दस साल में सत्ताधारी पार्टी के सांसदों ने बागवानों के मुद्दे संसद में नहीं उठाए। इन चुनावों में बागवान सवाल पूछेंगे। मई के पहले हफ्ते में इसे लेकर मंच रणनीति तय करेगा।