अफगानिस्तान, ग्रीस, तुर्किए और ईरान से भारत में गुठलीदार फलों का आयात हो रहा है जो हिमाचल के गुठलीदार फल उत्पादकों के लिए चुनौती साबित हो रहा है।
हिमाचल के गुठलीदार फल उत्पादकों ने चेरी, प्लम और आड़ू के लिए न्यूनतम आयात शुल्क घोषित करने की मांग उठाई है। अफगानिस्तान, ग्रीस, तुर्किए और ईरान से भारत में गुठलीदार फलों का आयात हो रहा है जो हिमाचल के गुठलीदार फल उत्पादकों के लिए चुनौती साबित हो रहा है।
भारत और अफगानिस्तान के बीच साफ्ता (दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र) समझौते के चलते बिना आयात शुल्क के गुठलीदार फलों के आयात से यह भारतीय बाजारों में सस्ती दरों पर पहुंच रहे हैं। इसका सीधा नुकसान हिमाचल के गुठलीदार फल उत्पादकों को हो रहा है। हिमाचल में गुठलीदार फलों का उत्पादन साल दर साल बढ़ रहा है।विज्ञापन
किसके लिए कितने आयात शुल्क की मांग
स्टोन फ्रूट ग्रोवर्स एसोसिएशन हिमाचल ने भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों से चुनावी घोषणा पत्र में गुठलीदार फलों प्लम और खुमानी के लिए 85 रुपये, चेरी के लिए 350 रुपये और आड़ू के लिए 95 रुपये प्रतिकिलो न्यूनतम आयात शुल्क घोषित करने की मांग उठाई है।विज्ञापन
500 करोड़ का कारोबार
हिमाचल के शिमला, सोलन, सिरमौर, कुल्लू, मंडी और किन्नौर में बड़े पैमाने पर गुठलीदार फलों का उत्पादन होता है। जो क्षेत्र सेब के उत्पादन के लिए अनुकूल नहीं है वहां भी गुठलीदार फलों की अच्छी पैदावार हो रही है। मौजूदा समय में हिमाचल में गुठलीदार फलों का करीब 500 करोड़ का कारोबार हो रहा है जो अगले 5 सालों में 1,000 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है।विज्ञापन
बाहरी देशों से आयात हो रहे चेरी, प्लम, खुमानी और आड़ू हिमाचल के गुठलीदार फल उत्पादकों के लिए चिंता का सबब बन रहे हैं। राजनीतिक दलों को घोषणा पत्र में गुठलीदार फलों के लिए न्यूनतम आयात मूल्य निर्धारित करने का एलान करना चाहिए। – दीपक सिंघा, अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश स्टोन फ्रूट ग्रोवर्स एसोसिएशन
जलवायु परिवर्तन की मार के बीच बना सेब का विकल्प
गुठलीदार फल उत्पादन सेब का विकल्प बन रहा है। जलवायु परिवर्तन की मार के कारण कम बर्फबारी से सेब के चिलिंग ऑवर पूरे करना कठिन होता जा रहा है। गुठलीदार फलों के लिए कम चिलिंग ऑवर की जरूरत होती है। देश के बड़े शहरों में हिमाचल की चेरी, प्लम, खुमानी और आड़ू की मांग बढ़ रही है और उत्पादकों को दाम भी अच्छे मिल रहे हैं। सेब के मुकाबले गुठलीदार फलों के उत्पादन की लागत भी कम है।