प्रदेश की शिमला संसदीय सीट पर वर्ष 2009 में भाजपा के प्रत्याशी वीरेंद्र कश्यप ने कांग्रेस का दुर्ग तोड़ा था।
हिमाचल प्रदेश की शिमला संसदीय सीट पर वर्ष 2009 में भाजपा के प्रत्याशी वीरेंद्र कश्यप ने कांग्रेस का दुर्ग तोड़ा था। उन्होंने धनी राम शांडिल को हराकर संसदीय सीट पर कमल का फूल खिलाया था। हालांकि, दो बार लगातार जीते वीरेंद्र कश्यप का टिकट सांसद रहते वर्ष 2019 के चुनाव में कट गया था। उसके बाद यहां से सांसद सुरेश कश्यप दूसरी बार भाजपा के उम्मीदवार हैं।
शिमला सीट के तहत तीन जिलों शिमला, सिरमौर और सोलन की 17 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें चौपाल, ठियोग, कसुम्पटी, शिमला, शिमला ग्रामीण, जुब्बल-कोटखाई, रोहड़ू, अर्की, नालागढ़, दून, सोलन, कसौली, पच्छाद, नाहन, श्री रेणुकाजी, पांवटा साहिब और शिलाई शामिल हैं। शिमला की यह लोकसभा सीट तीन जिलों शिमला, सिरमौर और सोलन में फैली हुई है। इसके अंतर्गत 17 विधानसभा सीटें आती हैं।
धनीराम शांडिल को दी थी शिकस्त
शिमला लोकसभा सीट 1967 से अनुसूचित जाति के आरक्षित हुई थी। 1967 और 1971 में इस सीट से कांग्रेस के प्रताप सिंह विजयी हुए। 1977 में यह सीट भारतीय लोकदल के बालक राम ने जीती। 1980 में कांग्रेस ने जीत हासिल की। कांग्रेस के केडी सुल्तानपुरी 1980, 1984, 1989, 1991, 1996 और 1998 तक लगातार जीतते रहे। 1999 का चुनाव हिमाचल विकास कांग्रेस के धनी राम शांडिल ने जीता। 2004 में धनी राम शांडिल ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और वह जीत गए। उसके बाद 2009 और 2014 में वीरेंद्र कश्यप दो बार सांसद बने।
उस जमाने में महिलाओं में मतदान को लेकर कम थी जागरुकता : जगमंती देवी
नाहन (सिरमौर)। जिला सिरमौर के टोकियों निवासी 100 वर्षीय जगमंती देवी का कहना है कि लोकतंत्र में वोट ऐसा माध्यम है, जिससे आम आदमी अपनी ताकत दिखा सकता है। अपने मन मुताबिक प्रत्याशी और सरकार चुन सकता है। उनका कहना है कि पहले भी वह मतदान करती आई हैं और भविष्य में भी जब मौका मिलेगा वह मतदान अवश्य करेंगी।उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा भी था जब महिलाओं में वोट डालने को लेकर इतनी जागरुकता नहीं थी। लेकिन अब समय बदल गया है। वोट डालने को लेकर महिलाएं पुरुषों से भी आगे निकल गई हैं। पुराने समय में चुनाव प्रचार के अलग तरीके थे और आज समय बदलने के साथ और हो गए हैं। लोगों को अपने मदाधिकार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।