सुधीर शर्मा इस बार भाजपा से नई पारी शुरू कर यहां पसीना बहा रहे हैं। कांग्रेस ने सीएम के करीबी देवेंद्र सिंह जग्गी को नए चेहरे के रूप मेंं मैदान में उतारा है। 2022 में भाजपा से चुनाव लड़ने वाले राकेश चौधरी बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश की बदली सियासत के बीच धर्मशाला विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए मुकाबला तिकोना हो गया है। ओबीसी 35 प्रतिशत, एसटी 23 फीसदी, एससी 20 फीसदी और 22 फीसदी सामान्य वर्ग के मतदाताओं वाली इस सीट पर जीत के लिए धौलाधार जितनी चुनौतियों का पहाड़ चढ़ना होगा। सुधीर शर्मा इस बार भाजपा से नई पारी शुरू कर यहां पसीना बहा रहे हैं। कांग्रेस ने सीएम के करीबी देवेंद्र सिंह जग्गी को नए चेहरे के रूप मेंं मैदान में उतारा है। 2022 में भाजपा से चुनाव लड़ने वाले राकेश चौधरी बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।
प्रवीण प्रकाश कुमार, संवाद न्यूज एजेंसी, धर्मशाला
चा बार कांग्रेस से विधायक और वीरभद्र सरकार मेंं शहरी विकास मंत्री रहे सुधीर शर्मा यहां पुराना चेहरा हैं। लेकिन हालात इस बार अलग हैं। दल बदलने के बाद सुधीर अपना राजनीतिक कॅरिअर बचाने के लिए खूब पसीना बहा रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं से मुलाकातों और बैठकों का दौर जारी है। सुधीर आत्मविश्वास से लबरेज हैं। लेकिन भितरघात का डर उन्हें सता रहा है। इसकी वजह यह है कि भाजपा में संगठन के लोगों को अपने साथ लेकर चलना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। सत्ता के सहारे चुनाव में उतरे कांग्रेस के देवेंद्र जग्गी और ओबीसी के दमदार नेता माने जाने वाले राकेश चौधरी को उपचुनाव में पराजित करना सुधीर के लिए आसान नहीं है।
जग्गी उपचुनाव में जीत के लिए मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के सहारे हैं। ओबीसी नेता राकेश चौधरी भी इस चुनाव में अपना भविष्य तलाश रहे हैं। वह समर्थकों के साथ चुनाव प्रचार में डटे हुए हैं। उल्लेखनीय है कि कुर्सी और सरकार बचाने में अभी तक कामयाब रहे सुक्खू धर्मशाला उपचुनाव के जरिये सुधीर को करारा जवाब देना चाहते हैं। चुनावी जनसभाओं में सुक्खू ने सुधीर को कई बार बागी विधायकों का मुख्य कर्ताधर्ता बताकर जुबानी हमले किए हैं। सुधीर और सुक्खू में शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। विज्ञापन
सुधीर शर्मा, भाजपा उम्मीदवार
- ताकत : राजनीतिक अनुभव, कुशल चुनाव प्रबंधन और भाजपा का अपना कैडर
- कमजोरी : दल बदलने के बाद विरोधियों की ओर से दुष्प्रचार
- चुनौती : भितरघात से बचना, कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़े रखना और सीएम से टक्कर
- अवसर : युवा होने के चलते भाजपा में लंबी पारी खेलने का मौका।
विकास की लड़ाई लड़ रहा हूं
अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर राम मंदिर के खिलाफ कोर्ट में खड़े होने वाले प्रत्याशी के खिलाफ वोट किया। हिमाचल से संबंध रखने वाले भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई। वर्तमान सरकार ने धर्मशाला से भेदभाव किया है। यह सरकार केंद्रीय विवि के जदरांगल में प्रस्तावित कैंपस का कार्य शुरू नहीं कर पाई। त्रियूंड ट्रैकिंग के नाम पर टैक्स लगा दिया। हिमानी चामुंडा मंदिर की सोलर लाइटें बंद करवा दीं। मैं धर्मशाला की जनता के मान-सम्मान और विकास की लड़ाई लड़ रहा हूं। – सुधीर शर्मा, भाजपा प्रत्याशी
देवेंद्र सिंह जग्गी, कांग्रेस प्रत्याशी
- ताकत : संगठन के सिपाही और मुख्यमंत्री सुक्खविंद्र सिह सुक्खू से नजदीकी
- कमजोरी : पूर्व में नगर निगम से बाहर राजनीतिक भविष्य नहीं आजमाया
- चुनौती : प्रतिद्वंद्वी का कुशल चुनाव प्रबंधन और राजनीतिक अनुभव आड़े आएगा
- अवसर : युवा होने के चलते कांग्रेस में लंबी सियासी पारी खेलने का मौका
जनता सिखाएगी सबक
मुख्यमंत्री सुक्खू ने प्रदेश की खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद सभी जिलों और विधानसभा क्षेत्रों में बिना भेदभाव विकास कराया है। यहां से विधायक रहे सुधीर शर्मा स्वार्थ की राजनीति करते हैं। 2012 में उनका गृह विधानसभा क्षेत्र बैजनाथ आरक्षित हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें धर्मशाला से चुनाव लड़वाया और मंत्री भी बनाया। 2019 में विधानसभा उपचुनाव और लोकसभा चुनाव लड़ने से इन्कार कर उन्होंने पार्टी को पीठ दिखाई। अब अपनी ही सरकार को गिराने का प्रयास किया। ऐसे प्रत्याशी को जनता सबक सिखाएगी। -देवेंद्र सिंह जग्गी, कांग्रेस प्रत्याश
राकेश चौधरी, निर्दलीय
- ताकत : ओबीसी वर्ग में सर्वमान्य नेता और पूर्व विस चुनाव का अनुभव
- कमजोरी : बार-बार दल बदलना। पूर्व में आम आदमी पार्टी तो बाद में भाजपा और अब निर्दलीय
- चुनौती : पुराने कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलना और मतदाताओं का विश्वास जीतना
- अवसर : चुनाव जीतने पर भाजपा या कांग्रेस के एसोसिएट विधायक बन सकते हैं
राजनीति में कर रहा हूं संघर्ष
मैं अभी राजनीति में संघर्ष कर रहा हूं और सुधीर शर्मा की तरह राजनीति में स्थापित होने के बाद अपने स्वार्थ के लिए राजनीति नहीं कर रहा हूं। भले ही मैं पिछला चुनाव हारा हूं, लेकिन चुनाव में शराब और पैसा नहीं बांटा। मैं लोगों के साथ अच्छे-बुरे वक्त में साथ रहा हूं, इसलिए उम्मीद है कि लोग मुझे चुनाव में वोट के रूप में अपना आशीर्वाद देंगे। पिछला चुनाव भाजपा से लड़ा था, इस बार भाजपा ने कार्यकर्ता के बजाय किसी अन्य दल के नेता को टिकट दिया। जनता की अदालत में जाकर इस इस बात को रखूंगा। – राकेश चौधरी, निर्दलीय प्रत्याशी
इधर-उधर के बजाय मुद्दों पर होनी चाहिए बात
शीला गांव की प्रभा देवी कहती हैं कि वर्तमान में बेरोजगारी एक समस्या बन चुकी है। सरकार को रोजगार की दिशा में योजनाएं बनानी चाहिए। इधर-उधर की बातें करने के बजाय असली मुद्दों पर बात होनी चाहिए। नेताओं के दल-बदल पर भी रोक लगनी चाहिए। नगर निगम के वार्ड नंबर 9 सकोह के निवासी कमल कहते हैं कि उनके गांव की खेतीबाड़ी के लिए मांझी और चरान खड्ड से निकलने वाली दूंदी कूहल से सिंचाई होती थी, लेकिन यह कूहल लंबे समय से बंद है। सरकार व प्रशासन का किसानों की समस्याओं को सुलझाने का समय तक नहीं है।
खनियारा के पूर्व सैनिक जविंद्र कुमार कहते हैं कि जब खनियारा ग्राम पंचायत थी तो इसमें करीब 700 से अधिक परिवार शामिल थे। लेकिन नगर निगम बनने के बाद उनकी पंचायत के दो टुकड़े कर दिए गए। करीब 600 परिवार वार्ड नंबर 15 खनियारा में हैं तो 100 अन्य परिवार वार्ड नंबर 16 सिद्धपुर में डाल दिए। वार्ड पार्षद से कुछ काम करवाना हो तो 5 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। धर्मशाला के युवा पंकज राणा का कहना है कि सभी प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के दौरान किए वादों को चुनाव जीतने के बाद धरातल पर उतारना चाहिए। कुछ नेता सत्ता पर काबिज होने के बाद लोगों से किए वादों को भूल जाते हैं। पासू के किसान अमर सिंह खेतों में गेहूं की कटाई करते हुए कहते हैं कि उनके क्षेत्र में सब्जी मंडी तो बनाई है लेकिन इसे शुरू नहीं किया।