हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के वन्यप्राणी विहार रेणुकाजी में वन्य प्राणी विभाग के कर्मचारियों ने रेणुका झील के आखिरी छोर पर लुप्तप्राय स्पॉटेड ब्लैक पॉन्ड टर्टल (जियोक्लेमिस हेमिल्टोनी) को देखा है।
वन्यप्राणी विहार रेणुकाजी में विचित्र व विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे चित्तीदार तालाब नामक कछुए की पहचान हुई है। यह हिमाचल में पहली बार दिखा है। वन्य प्राणी विभाग के कर्मचारियों ने रेणुका झील के आखिरी छोर पर लुप्तप्राय स्पॉटेड ब्लैक पॉन्ड टर्टल (जियोक्लेमिस हेमिल्टोनी) को देखा है। हैमिल्टन के टेरापिन के रूप में भी जानी जाने वाली यह प्रजाति अक्सर सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के जल निकासी घाटियों में स्थित मीठे पानी में पाई जाती है। भारत, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में वितरित, चित्तीदार तालाब कछुओं की पहचान उनके काले सिर, पैर और पूंछ पर पीले या सफेद धब्बों से की जाती है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची के तहत संरक्षित होने के बावजूद अवैध वन्यजीव व्यापार में उनके उच्च मूल्य के कारण चित्तीदार तालाब कछुए अक्सर शिकारियों के निशाने पर होते हैं लेकिन, ऐसी लुप्तप्राय प्रजाति की उपस्थिति न केवल वन्य प्राणी विभाग की ओर से प्रदान की गई प्रभावी सुरक्षा को उजागर करती है वहीं रेणुका वन्यजीव अभयारण्य में उपलब्ध वन्यजीव आवास की अच्छी गुणवत्ता को भी दर्शाती है।
रेणुका झील भारत के रामसर आर्द्रभूमि में सबसे छोटी है, लेकिन यह कई अन्य कछुओं की प्रजातियों जैसे लुप्तप्राय भारतीय सॉफ्टशेल कछुए, भारतीय छत वाले कछुए के साथ-साथ भारतीय काले कछुए और भारतीय फ्लैपशेल कछुए के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। कछुओं को जलीय मृतभक्षी भी कहते हैं, इसलिए रेणुका झील में इनकी यह विविधता, झील के समग्र स्वास्थ्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
वन्य प्राणी विभाग शिमला के डीएफओ डॉ. शाहनवाज अहमद ने बताया कि रेणुका वैटलैंड में चित्तीदार तालाब कछुए का मिलना पर्यावरण के लिए भी शुभ संकेत है। पूरे हिमाचल में यह पहली मर्तबा रिकॉर्ड हुआ है। हालांकि रेणुका झील में पहले भी करीब आधा दर्जन प्रजातियों के कछुए पाए जाते हैं लेकिन इस विलुप्त होती प्रजाति का देखा जाना पर्यावरण संरक्षण के लिए भी एक शुभ संकेत है और इस कच्छुए का मिलना रेणुका वैटलैंड में वन्य जीवों व वन्य प्राणियों को सुरक्षा व संरक्षण को भी दर्शाता है।