कॉलेजों की परीक्षाएं खत्म होते ही राजनीतिक दलों ने अपने छात्र संगठनों को चुनावी रण में झोंक दिया है। छात्र राजनेता अपनी विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के लिए प्रचार में खूब परिश्रम कर रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) से जुड़े छात्र नेता और कार्यकर्ता कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे हैं। इंडी गठबंधन में कांग्रेस के साथ माकपा की मोर्चेबंदी के बाद वाम विचारधारा से संबंधित संगठन एसएफआई के नेता और कार्यकर्ता भी भाजपा के खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं। वहीं, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े अनेक छात्र भी भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के बैनर तले भाजपा के प्रत्याशियों के पक्ष में जनसंपर्क अभियान में पसीना बहाने लगे हैं।
एनएसयूआई के नेता कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों को विजयी बनाने के लिए ग्राम पंचायतों में जाकर नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं। वे बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों और घरों में जाकर जनसंपर्क में जुटे हैं। एनएसयूआई कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों और 15 महीने के भीतर सुक्खू सरकार के विकास कार्यों के बारे में जनता को अवगत करवा रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के घोषणापत्र में युवाओं के लिए रोजगार से संबंधित अपीलें बांट रहे हैं। एनएसयूआई सीधे तौर पर कांग्रेस का फ्रंटल संगठन कहलाता है, मगर एबीवीपी के कार्यकर्ता बेशक खुलकर सामने न आने की बात कर रहे हों, मगर उनमें से भी बड़ी संख्या में कार्यकर्ता भाजयुमो से जुड़कर चुनावी रण में भाजपा के लिए समर्थन मांग रहे हैं।
भाजयुमो नेता नए वोटरों का नाम पता कर स्कूल और कॉलेजों के बाहर भी युवाओं को रिझाने में जुटे हैं। वे हॉस्टल में रह रहे विद्यार्थियों से भी संपर्क में हैं। ये नेता भी मोदी सरकार की उपलब्धियां और हिमाचल सरकार की नाकामियों जैसी बातों से प्रचार कर रहे हैं। इनके ब्लॉक और पंचायत स्तर पर भी अभियान चले हैं। हिमाचल प्रदेश में 11 लाख युवा मतदाता हैं। इनमें से डेढ़ लाख मतदाता पहली बार अपने मत का प्रयोग करेंगे। इससे पहले परीक्षाओं के चलते छात्र संगठनों के नेता भी प्रचार में भाग नहीं ले पा रहे थे।
आनंद रहे हैं एनएसयूआई के संस्थापक सदस्य
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा भी छात्र राजनीति से निकले हैं। आनंद एनएसयूआई के संस्थापक सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने आरपीसीएसडीबी (अब यह आरकेएमवी कालेज है) में पढ़ाई की। भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। वह केंद्र में वाणिज्य, उद्योग और विदेश मंत्री रहे हैं। वह लोकसभा चुनाव में कांगड़ा से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। ठियोग के विधायक कुलदीप सिंह राठौर भी छात्र राजनीति से ऊपर उठकर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पद तक पहुंच चुके हैं। माकपा नेता राकेश सिंघा भी एसएफआई से ही आगे बढ़े।
कॉलेजों में परीक्षा के चलते प्रचार अभियान धीमा था। अब परीक्षाएं खत्म होते ही छात्र नेता और कार्यकर्ता फील्ड में उतर गए हैं। लोगों को सुक्खू सरकार की उपलब्धियां और अपीलें बांटी जा रही हैं। प्रदेश में छात्र नेताओं की तैनातियां की गई हैं। प्रतिदिन फीडबैक लिया जा रहा है। -छत्तर सिंह, राज्य अध्यक्ष एनएसयूआई
छात्र संगठनों की बैठकें हो रही हैं। एबीवीपी के छात्र नेता भी बैठकें कर रहे हैं। वे लोगों को शत-प्रतिशत मतदान की अपील कर रहे हैं। भाजयुमो की ओर से मोदी सरकार की अपीलें बांटी जा रही हैं। छात्र संगठन कॉलेज और विवि कैंपस में प्रचार कर रहे हैं। -साहिल चंदेल, मीडिया सह प्रभारी, भाजयुमो
एसएफआई के छात्र नेता अलग-अलग संस्थानों में जा रहे हैं। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में जाकर परचे बांट रहे हैं। भाजपा को हराने की बात कर रहे हैं। सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ वोट देने की अपील कर रहे हैं।– दिनित देंटा, प्रदेश सचिव, एसएफआई
छात्र राजनीति से आगे बढ़कर बड़े-बड़े ओहदों पर पहुंचे हिमाचल के कई नेता
हिमाचल प्रदेश में अधिकांश नेता छात्र राजनीति से उठकर पार्टी के बड़े ओहदों पर पहुंचे हैं। कई छात्र नेता मंत्री बने हैं तो कई ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना झंडा गाड़ा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के रास्ते ही राजनीति में आगे बढ़े। जेपी नड्डा ने शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एलएलबी की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया और वहीं से प्रदेश की छात्र राजनीति में चमके। वर्ष 1983 में जेपी नड्डा विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी के तौर पर छात्रसंघ इकाई के अध्यक्ष चुने गए। 1989 में एबीवीपी के राष्ट्रीय महामंत्री चुने गए। वर्ष 1993 में चुनावी राजनीति में उतरे और बिलासपुर सदर विधानसभा सीट से विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे। वह हिमाचल में स्वास्थ्य मंत्री भी रहे हैं। 2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली पहली सरकार बनी तो उसमें भी जेपी नड्डा देश के स्वास्थ्य मंत्री रहे।
मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू संजौली कॉलेज में क्लास रिप्रेजेंटेटिव रहे हैं। वह विश्वविद्यालय में केंद्रीय छात्रसंघ के महासचिव भी चुने गए। एनएसयूआई के प्रदेशाध्यक्ष भी बने। वर्ष 1993 -1998 और 1998-2003 में दो बार नगर निगम शिमला के पार्षद रहे। 2008 से 2012 तक वह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे। 2013 – 2019 तक कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष रहे। 2003 में सुक्खू पहली बार विधानसभा पहुंचे।
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहे हैं। ठाकुर ने अखिल भारतीय एबीवीपी में संयुक्त सचिव, एबीवीपी जम्मू-कश्मीर में पदाधिकारी सहित विभिन्न प्रमुख पदों पर कार्य किया। वह भाजयुमो के सचिव, युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और 2006 से 2009 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। वर्ष 1998 में जयराम ठाकुर पहली बार विधानसभा पहुंचे। वर्ष 2017 में वह हिमाचल के मुख्यमंत्री बने। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विपिन सिंह परमार एबीवीपी के नेता रहे हैं। परमार विद्यार्थी परिषद के सह-संगठन सचिव से लेकर आयोजन सचिव भी रहे। वह एबीवीपी की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य, भाजपा युवा मोर्चा के प्रभारी भी रहे। 1998 में विधानसभा के लिए चुनकर आए। पूर्व भाजपा सरकार में वह स्वास्थ्य मंत्री भी रहे हैं।