
भारत में मौसम मेहमानों की तरह होते हैं। उनका स्वागत भी देवताओं सरीखा होता है। कहते भी हैं न, अतिथि देवो भवः। जैसे किसी अतिथि के आने से पहले तैयारी होती है, उसी तरह मौसम के स्वागत की भी तैयारी पूरे जोरशोर से होती है। मौसम बदलने वाला है, यह किसी भी घर की तैयारी को देखकर लगाया जा सकता है। तैयारी का आलम तो यह है कि मौसम बदलते ही जैसे पूरे घर की व्यवस्था ही बदल जाती है।
अमेरिका और यूरोप के तमाम देशों में या तो ज्यादा सर्दी पड़ती है या फिर कम सर्दी हो जाती है। इसके मुकाबले पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में मौसम के बहुत सारे शेड्स हैं। यहां के लोग किसी भी मौसम से घबराते नहीं। लोग इन मौसमों को जीते और पीते हैं। हर मौसम का स्वागत करते है।
दुनिया के तमाम देशों में सिर्फ चार ऋतुएं होती हैं। यानी बहार, गर्मी, बरसात और सर्दी। वहीं भारत में छह ऋतुएं होती हैं। यह मौसम हैं, बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु और शिशर या शीत ऋतु।
भारत की छह ऋतुएं
भारतीय कैलेंडर में चैत (चैत्र) साल का पहला महीना होता है। माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने चैत मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही इस दुनिया की रचना शुरू की थी। फागुन (फाल्गुन) पूर्णिमा के बाद चैत मास की शुरुआत हो जाती है। मौसम के लिहाज से चैत से बैसाख (वैशाख) यानी मार्च और अप्रैल का महीना वसंत ऋतु का होता है। इस आधार पर कह सकते हैं कि अपने देश की पहली ऋतु वसंत है।
भारतीय जीवन दर्शन में वसंत ऋतु सबसे सुंदर मानी जाती है। इस ऋतु में प्रकृति अपना नया चोला धारण करती है। पेड़ों पर नई कोपलें आने लगती हैं। यूं लगता है कि हर पेड़ और लता अपना रूप-श्रृंगार कर रही है। ताजा हरे पत्तों के बीच चिड़ियां फुदकने लगती हैं। कोयल और पपीहा रह-रह कर गाने लगते हैं।
हर तरफ उल्लास का वातावरण होता है। मन भी उल्लसित रहता और प्रसन्न रहता है। गांव-देहातों में महिलाएं वसंत के गीत गुनगुनाने लगती हैं, रे सखी वसंत आया। वसंत को ऋतुओं का राजा माना गया है। इसीलिए इसे ऋतुराज बसंत भी कहते हैं।
जेठ (ज्येष्ठ) से आषाढ़ यानी कि अप्रैल से जून का मौसम ग्रीष्म ऋतु का होता है, यानी गर्मियों का मौसम। भारतीय लोगों को यह मौसम सबसे ज्यादा पसंद है। इसकी कुछ खास वजहें भी हैं। स्कूल डेज में मिलने वाली गर्मियों की छुट्टियां का क्रेज बाद तक मौजूद रहता है। गर्मी के दिन फुरसत के होते हैं।
दूसरे यह मौसम फलों का माना जाता है। आम, तरबूज, खरबूजा, लीची, संतरा, अनानास, खिन्नी, फालसा, शहतूत जैसे फल इस मौसम में खूब-खूब मिलते हैं और खाए जाते हैं। खीरा और ककड़ी भी इस मौसम में मिलते हैं। पानी से भरपूर तरबूज, खरबूजा, खीरा और ककड़ी दिलो-दिमाग को तर कर देते हैं।
तीसरी ऋतु है वर्षा यानी बारिश की। भारतीय कैलेंडर के हिसाब से यह अषाढ़ और सावन (श्रावण) का मौसम होता है। यानी जून, जुलाई और अगस्त का महीना। वसंत के बाद बारिश का महीना सबसे ज्यादा उल्लास का होता है। गर्मी में प्यास से व्याकुल हुई धरती को वर्षा की बूंदे तृप्त करती हैं। भीगी-भीगी सी हवा से पूरा माहौल ही खुशनुमा हो जाता है। पेड़-पौधे नहा धोकर खूब हरे-भरे से दिखते हैं। मेंढकों की टरटर का राग और मोर का नाच प्रकृति को सौंदर्य से भर देते हैं।
बारिश के मौसम में झींगुर की तान भी कुछ अलग सी सुनाई देती है। आसमान पर उमड़ते-घुमड़ते सफेद-काले बादल बहुत सुहाने लगते हैं। छत पर गिरती टप-टप सी बूंदे एक अलग तरह का शांत सा संगीत पैदा करती हैं। इसी मौसम में खेत में धान रोपे जाते हैं। गांवों में महिलाएं धान रोपते हुए कजरी गाती हैं। बड़ा भला सा नजारा होता है। धानी हरे से धान के यह पौधे जीवंतता का एहसास कराते हैं।
चौथी ऋतु शुरू होती है भादौं (भाद्रपद) और आसौं (आश्विन) के महीने से। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से अगस्त से अक्टूबर का महीना होता है शरद ऋतु का। यहां से गुलाबी जाड़े की शुरुआत होती है। बारिश जा चुकी होती है और हवा में थोड़ी ठंडक आ जाती है। सूरज भी जरा घूम कर जाने लगता है। मन थोड़ा अलसाया सा रहता है। इस ऋतु में आसमान एक दम साफ और नीला-नीला सा दिखाई देता है। धूप थोड़ा अच्छी लगने लगती है। सुबह पेड़-पौधों पर ओस की बूंदें नजर आने लगती हैं।
पांचवीं ऋतु के तौर पर आती है हेमंत। यह कातिक (कार्तिक) और पूस (पौष) के महीने में आती है। यह अक्टूबर से दिसंबर का महीना होता है। दिसंबर आते-आते कड़ाके की सर्दी शुरू हो जाती है। खास तौर से रातें बहुत सर्द होती हैं। मुंशी प्रेमचंद ने ‘पूस की रात’ नाम की कहानी में एक सर्द भरी रात का जिक्र किया है। इन दिनों दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं।
ये मौसम तमाम तरह की सब्जियों का होता है। गोभी से लेकर पालक, बैगन, सोया-मेथी जैसे साग-सब्जी इफरात हो जाते हैं। यूं ये सारी सब्जियां अब तो बारोमारस मिलती हैं, लेकिन सर्दियों वाली सब्जियों का स्वाद ही निराला होता है।
साल का छठवां और आखिरी मौसम होता है शीत ऋतु। माघ से फागुन (फाल्गुन) यानी दिसंबर से फरवरी तक यह मौसम रहता है। इसे शिशिर ऋतु भी कहते हैं। यह सर्दियों के मौसम के सब से सुहाने दिन होते हैं। फरवरी में सर्दी जा रही होती है। दिन जरा बड़े हो जाते हैं। हवा अच्छी लगने लगती है। गर्म कपड़ों से झुटकारा लेने का वक्त आ जाता है। वसंत की आहट मिलने लगती है। मन में उल्लास के बीज उगने लगते हैं।
यह छह ऋतुएं जीवन में रास-रंग भर जाती हैं। हर ऋतु की अपनी खूबसूरती और खासियत है। यही वजह है कि यह ऋतुएं भारतीय जीवन दर्शन का हिस्सा हैं।