सेब सीजन के शुरुआत में ही बागवानों को नई मुश्किल ने घेर लिया है। सेब के पौधों को अल्टरनेरिया रोग लग गया है। रोहडू, कोटखाई, जुब्बल और ठियोग में 70 से 95 फीसदी तक पौधे इस रोग से प्रभावित हो गए हैं। डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी की टीमों के निरीक्षण के बाद इसका खुलासा किया है। रोहडू की पुजारली पंचायत के बागवान पिंकू गाजटा ने बताया कि पत्तों में रोग लगने से सेब में भूरे और काले दाग पड़ना शुरू हो गए हैं। फल समय से पहले झड़ना शुरू हो गया है।
कृषि विज्ञान केंद्र शिमला की एक टीम ने रोहडू, कोटखाई और जुब्बल के करीब 20 गांवों के बगीचों का निरीक्षण किया। बगीचों में देखे गए लक्षणों के आधार पर अल्टरनेरिया रोग की पहचान हुई है। यह रोग कई स्थानों पर 95 फीसदी तक पौधों को प्रभावित कर चुका है। रोग की गंभीरता बगीचों के बीच भिन्न पाई गई। अधिकतम पत्ती रोग की गंभीरता 56.3 फीसदी तक पहुंच गई है। इस टीम में डॉ. उषा शर्मा, डॉ. अजय ब्रागटा, और डॉ. नागेंद्र बुटेल शामिल रहे। दूसरी टीम ने ठियोग क्षेत्र का निरीक्षण किया। जहां पर 60 से 70 फीसदी तक सेब के बगीचे प्रभावित हो चुके हैं। इस टीम में डॉ. आरती शुक्ला, डॉ. नीना चौहान और डॉ. संगीता शर्मा शामिल रहीं। तीसरी टीम ने चौपाल और नेरवा क्षेत्र का निरीक्षण किया। यहां जिले के दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा काफी कम बगीचे प्रभावित देखे गए। इनकी प्रतिशतता अधिकतम करीब 3 फीसदी तक है। टीम में डॉ. प्रमोद शर्मा, डॉ. राकेश कुमार और डॉ. शालिनी वर्मा शामिल रहे।
रोग की गंभीरता में योगदान देने वाले कारक
कृषि विज्ञान केंद्र रोहडू की प्रभारी डॉ. उषा वर्मा ने बताया कि पौधों में इस रोग की पहचान हुई है। कम वर्षा की स्थिति (नवंबर 2023 से जुलाई 2024) और जून 2024 में रुक-रुक कर बारिश होने से रोग फैला। ज्यादा माइट आबादी ने पौधों के तनाव में योगदान दिया। इससे पत्ती धब्बा रोग और बढ़ा। वैज्ञानिक डॉ. आरती शुक्ला ने कहा कि रासायनिक स्प्रे के अनुचित उपयोग से पौधे कमजोर हो गए। वैज्ञानिक डॉ. शालिनी वर्मा ने कहा कि जिन बागवानों ने विभाग की ओर से अनुमोदित खादों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया है। वहां पर इस बीमारी का ज्यादा प्रकोप देखने को मिला है।
रोग के लक्षण
छाया और अधिक नमी वाले बगीचों में रोग के अधिक लक्षण दिखाई दे रहे हैं। शुरूआती चरण में रोग सेब की पत्तियों पर दिखाई देता है। रोग से ग्रस्त पत्तियों की ऊपरी सतह पर गोलाकार गहरे हरे रंग के धब्बे नजर आते हैं। यह हरे धब्बे पहले भूरे और फिर गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। पत्तियों का शेष भाग पीले रंग का होता जाता है। रोग के पनपने से समय से पूर्व ही पतझड़ होता है। जिससे फलों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। संक्रमित फलों पर भी भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। फलों का विकास भी रुक जाता है। उद्यान विभाग के विषयवाद विशेषज्ञ डॉ. संजय चौहान ने बताया कि बगीचों में अल्टरनेरिया रोग फैलना आरंभ हो गया है। रोग सेब के लिए बहुत घातक है। सेब तुड़ान से पहले ही सेब के पौधे से पत्तियां झड़ जाएंगी। फल भी पूरी तरह से खराब हो जाएगा।