पर्यावरण को प्रभावित किए बिना होगा सौर ऊर्जा का उत्पादन, आईआईटी मंडी ने किया शोध.

देश में अब पर्यावरण को प्रभावित किए बिना सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकेगा। इसके लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए सबसे टिकाऊ और लाभदायक विकल्पों की पहचान की है।  पांच सौर सेल प्रौद्योगिकियों का एक व्यापक जीवन चक्र मूल्यांकन किया है। यह शोध भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप कुशल और पर्यावरण के अनुकूल सौर ऊर्जा प्रणालियों की महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा करता है। आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ मेकेनिकल एंड मेटीरियल्स इंजीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अतुल धर, डॉ. सत्वशील रमेश पोवार, डॉ. श्वेता सिंह का यह अध्ययन प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ पर्यावरण प्रबंधन में प्रकाशित हुआ है।

भारत में प्रभावी सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने के लिए विभिन्न सौर प्रौद्योगिकियों के लाभ और हानि को समझना महत्वपूर्ण है। विश्वस्तर पर कई अध्ययन किए गए हैं। अधिकांश ने ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल और एनर्जी पेबैक टाइम जैसी प्रभाव श्रेणियों का मूल्यांकन किया है। मगर इनसे ओजोन क्षरण पर होने वाले प्रभाव का मूल्यांकन नहीं किया है। अपने शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि अध्ययन की गई कि पांच तकनीकों में से कैडमियम टेल्यूराइड तकनीक ने पर्यावरण पर सबसे कम प्रभाव डाला। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, ओजोन क्षरण क्षमता, मानव स्वास्थ्य प्रभाव और कण वायु प्रदूषण सबसे कम था। इसके बाद कॉपर इंडियम गैलियम सेलेनाइड सेल का स्थान रहा। इसके अलावा मोनो सिलिकॉन, पॉलीसिलिकॉन और निष्क्रिय उत्सर्जक और रियर संपर्क पर भी मूल्यांकन किया।

आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ मेकेनिकल एंड मेटीरियल्स इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अतुल धर ने कहा कि यद्यपि सौर प्रणालियां अपने परिचालन चरण के दौरान जीवाश्म ईंधन की तुलना में पर्यावरण के लिए अनुकूल होती हैं, फिर भी विनिर्माण और उपयोग के चरणों के दौरान इनका पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। कहा कि हमने भारतीय विनिर्माण स्थितियों का उपयोग करते हुए पांच सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन किया, जिनसे बिना किस पर्यावरण प्रभाव के सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। वहीं, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सत्वशील रमेश पोवार ने कहा कि सौर मॉड्यूल प्रौद्योगिकियों के जीवन चक्र मूल्यांकन से सबसे अधिक टिकाऊ प्रौद्योगिकी की पहचान करने में मदद मिल सकती है।

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