कृषि विवि पालमपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने जुलाई के दूसरे पखवाड़े में होने वाली कृषि कार्यों को लेकर किसानों को सलाह दी है, ताकि किसान समय पर अपने कृषि कार्य निपटा सकें। कृषि विशेषज्ञों की ओर से जारी सलाह में कहा गया है कि जिन किसानों ने धान की रोपाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में की है और रोपाई के बाद जो पौधे खराब हो गए हैं, वहां पर खराब पौधे की जगह नए पौधे की रोपाई कर दें। रोपाई वाले धान में खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के चार दिन बाद सेफनर के साथ प्रीटिलाक्लोर 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर या रोपाई के सात दिन बाद सेफनर के बिना प्रीटिलाक्लोर का प्रयोग करें या फिर धान की रोपाई के चार दिन के अंदर व्यूटाक्लोर मचैटी दानेदार पांच प्रतिशत 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या तीन लीटर मचैटी 50 ईसी को 150 किलोग्राम रेत में मिलाकर खड़े पानी में चार से पांच दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
धान की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बाइस्पाईरीबैक 10 ईसी क्षेत्रफल के हिसाब से छिड़काव करें। मक्की की 30 से 35 दिन की फसल में यूरिया निराई-गुडाई के साथ डाल दें। फसल में सभी प्रकार के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 दिन बाद टेंबोट्रियोन का छिड़काव करें। निचले और मध्यवर्ती क्षेत्रों में जिन किसानों ने माश (हिम -39या-1, यूजी-218, पालमपुर-93), मूंग (सुकेती-1, एसएमएल-668, -रु39या इनिंग मूंग नंंबर-1 व पूसा बैसाखी), कुल्थी (बीएल जी, बैजू, एचपी के-4) एवं सोयाबीन (शिवालिक, हरा सोया, पालम सोया, हिम सोया या हिम पालम हरा सोया) की बिजाई की है, वे किसान खेत से जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें और खरपतवार नियंत्रण करें।
बीबीएन में सुंडी रोग से मक्की की फसल तबाह
बीबीएन के पहाड़ी क्षेत्र में मक्की की फसल पर फाल आर्मी वर्म (सुंडी) रोग ने हमला बोल दिया है। यह एक प्रकार की कीड़ा होता है तो मक्की के तने का रस चूसकर उसे सूखा देता है। यह रोग पिछले तीन साल से किसानों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। पहाड़ी क्षेत्र में मक्की की अगेती बिजाई हुई है। यहां पर यह रोग अधिक फैला है। वहीं मैदानी क्षेत्र में अभी फैलना शुरू हुआ है। बीबीएन में चार हजार हेक्टेयर क्षेत्र जमीन पर मक्की की फसल होती है। पहाड़ी क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा न होने से किसान पहली ही बारिश में मक्की की बिजाई कर देते हैं। वर्तमान में अधिकतर किसानों के खेत में सुंडी रोग ने हमला बोल दिया है। सुंडी मक्की के तनों में हमला करती है जिससे पौधे का विकास रुक जाता है। अगर बारिश होती है तो पानी भरने से यह सुंडी मर जाती है, लेकिन इस साल कम बारिश होने से सुंडी का प्रकोप ज्यादा है।
रामशहर पंचायत की प्रधान कृष्णा शर्मा, साई के प्रधान मेहर चंद, कंडोल के प्रधान अनिल शर्मा, सरौर के प्रधान धर्मपाल चंदेल, रतवाड़ी की पूजा देवी, बेहड़ी के प्रधान कृष्ण चंद, क्यार कनेता के रघुराज पराशर, बायला की प्रधान रचना कौशल ने बताया कि इस साल बारिश बहुत कम हो रही है। इससे सूंडी ने मक्की की फसल को तबाह करके रख दिया है। इस रोग ने पिछले तीन साल से फसल को बर्बाद कर रहा है। प्रगतिशील किसान राहुल देव चौहान ने बताया कि किसान अपने खेत में बांस की लकड़ी की टी बनाकर खड़ा कर सकते हैं।
इस पर बैठकर पक्षी सुंडी व उसके अंडे को नष्ट करते हैं। उन्होंने यह प्रयोग के तौर पर अपने खेत में किया है जो काफी सफल रहा है। सूंडी के लिए कोराजीन आदि दवाई का छिड़काव किया जा सकता है, लेकिन इससे मित्र कीट भी मर जाते हैं, जो फसल के लिए नुकसानदायक हैं। वहीं कृषि विकास अधिकारी भोपाल ठाकुर ने बताया कि किसान 60 एमएल कोराजीन 200 लीटर पानी में मिलाकर इसे पांच बीघा जमीन में छिड़काव करें। यह छिड़काव रात के समय करें। इससे सूंडी को रोकने में काफी मदद मिलेगी। बारिश होती है तो पानी मक्की के गोब में जमा हो जाता है। पानी में यह कीट व उसके अंडे मर जाते हैं।