अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाह हो तो मुश्किल से मुश्किल राह भी आसान हो जाती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला की पिंकी हरयान ने। मैक्लोडगंज में भगवान बुद्ध के मंदिर के पास पर साढ़े चार साल की उम्र में मासूम पिंकी हरयान कभी अपनी मां के साथ पेट की आग को शांत करने के लिए भीख मांगनी पड़ी। लेकिन भगवान बुद्ध की करुणा और दया के अनुयायी तिब्बती शरणार्थी भिक्षु जामयांग ने भीख मांगने और कूड़ा बीनने वाले बच्चों के साथ पिंकी को भी अपना बच्चा समझकर नई जिंदगी दी।
अब ठीक 20 साल बाद पिंकी मरीजों की सेवा करने के लिए तैयार हैं। दरअसल, पिंकी एमबीबीएस की कठिन पढ़ाई पूरी कर डॉक्टर बन चुकी हैं। टोंग-लेन चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक और निदेशक जामयांग ने पिंकी को 2018 में चीन के एक प्रतिष्ठित मेडिकल विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाया था। वहां से छह साल की एमबीबीएस की डिग्री पूरी करके अब वह धर्मशाला लौट आई हैं।
अब एक डॉक्टर के तौर पर मरीजों का इलाज करेंगी। गुरुवार को धर्मशाला में आयोजित पत्रकार वार्ता के दाैरान पिंकी ने अपने संघर्ष व सफलता की कहानी को बयां किया। इस दाैरान जामयांग भी उनके साथ रहे।
जामयांग ने बताया कि टोंग-लेन एक छोटी चैरिटी है, जो धर्मशाला के आसपास के इलाकों में विस्थापित भारतीय समुदायों के साथ काम करती है। ज्यादातर परिवार झुग्गी-झोपड़ियों में हताशा की स्थिति में रहते हैं। टोंग-लेन का उद्देश्य इन बेघर समुदायों को बुनियादी मानवाधिकारों तक पहुंच प्राप्त करने में मदद करना है। कहा कि दलाईलामा फाउंडेशन की ओर से भी काफी मदद की गई है।