भगवान रघुनाथ के अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा की शोभा को बढ़ाने के लिए पिछले 374 सालों में दूर-दूर से देवी-देवता पहुंचते हैं। इनमें सात देवी-देवता ऐसे भी हैं, जो लाव-लश्कर के साथ 200 किलोमीटर का पैदल सफर कर दशहरा में शिरकत करते हैं। ये सभी देवी-देवता जिला कुल्लू के निरमंड खंड के हैं। खास बात यह है कि इन सात देवी-देवताओं में चार सगे भाई-बहन हैं, जो दशहरा की परंपरा का निर्वहन करने के लिए रघुनाथ की नगरी अठारह करड़ू सौह में विराजमान रहते हैं। देवालयों से कुल्लू तक आने में इन्हें तीन से छह दिन का समय लगता है।
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में निरमंड खंड से आए इन देवी-देवताओं में देवता चंभू रंदल, देवता चंभू कशोली, देवता चंभू उरटू और माता भुवनेश्वरी भाई-बहन हैं। हालांकि ये चार भाई और सात बहनें हैं, लेकिन दशहरा के लिए अठारह करड़ू की सौह में केवल चार भाई-बहन ही शिरकत करते हैं। अन्य एक भाई और छह बहनें दशहरा में नहीं आतीं।
इनके अलावा दशहरा की शोभा बढ़ाने निरमंड खंड से देवता शरशाही नाग, देवता सप्त ऋषि, देवता मार्कंडेय ऋषि नोर और देवता कुई कंडा नाग भी आए हैं। ये सभी देवी-देवता लालचंद प्रार्थी कलाकेंद्र के समीप स्थापित अस्थायी शिविरों में लंका दहन की परंपरा का निर्वहन होने तक श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे।
शरशाई के देवता शरशाही नाग, घाटू के देवता कुई कंडा नाग और थंतल के देवता सप्त ऋषि को कुल्लू पहुंचने में तीन, कशोली के देवता चंभू को चार, रंदल के देवता चंभू और उरटू के देवता चंभू को पांच तथा दुराह की माता भुवनेश्वरी को छह दिन का समय लगा है।
देवता चंभू के कारदार राम दास, माता भुवनेश्वरी के कारदार केशव राम व देवता कशोली चंभू के कारदार लीला चंद ने कहा कि देवी-देवताओं के कारकूनों और हारियानों की मानें तो दशहरा में देवी-देवता सैकड़ों सालों से आ रहे हैं और देवालयों से निकलने से लेकर वापस पहुंचने तक कम से कम 15 दिन का समय लग जाता है।