उत्तर दिशा के ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 1008 पहली बार राजधानी शिमला पहुंचे।। शंकराचार्य गो हत्या को रोकने और गो माता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने के लिए राजधानी के प्रसिद्ध जाखू मंदिर में गो ध्वज की स्थापना की। इसके बाद शहर के श्रीराम मंदिर में धर्मसभा का आयोजन रखा गया था, लेकिन उन्होंने इस कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया और जाखू मंदिर से ही संदेश दिया। साईं की मूर्ति होने की वजह से शंकराचार्य श्रीराम मंदिर नहीं गए। शंकराचार्य के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शैलेंद्र योगिराज सरकार ने यह जानकारी दी। कहा कि हालांकि, इस पर मंदिर के ट्रस्टी भी शंकराचार्य से मिले और आश्वासन दिया कि जल्द बैठक कर साईं की प्रतिमा को मंदिर से हटाया जाएगा। इसी आधार पर राम मंदिर में भी एक गो ध्वज की स्थापना की गई। इसके बाद शंकराचार्य देहरादून के लिए रवाना हो गए। शंकराचार्य बुधवार रात को शिमला पहुंचने के बाद न्यू शिमला में अपने किसी अनुयायी के घर रुके थे।
33 राज्यों की राजधानी में गो ध्वज फहराया जा रहा
बता दें अयोध्या राम मंदिर में भी शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने शास्त्र और वेदों के माध्यम से अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनने वाली भूमि को राम जन्म की भूमि होने का प्रमाण दिया था। गो माता को पशु की श्रेणी से हटाकर राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया है। 22 सितंबर को अयोध्या में श्री राम मंदिर में गो ध्वज स्थापना और जयघोष के साथ यह यात्रा शुरू हुई है। इसमें 33 राज्यों की राजधानी में गो ध्वज फहराया जा रहा है। 25 हजार 600 किलोमीटर की यात्रा 27 अक्तूबर को वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में गो ध्वज फहराने के साथ समाप्त होगी। राजधानी शिमला 33वां राज्य है जहां गो ध्वज फहराया जाएगा। इसी कड़ी में धर्म, संस्कृति और गो माता के सम्मान के महायज्ञ में आज सनातन धर्म के ध्वज को राम मंदिर के शिखर पर फहराने का कार्यक्रम था, जिसका शंकराचार्य ने बहिष्कार किया।