कांगड़ा में गिद्धों का कुनबा बढ़ा है। गिद्धों की व्हाइट रुम्पड वल्चर प्रजाति की करीब 20 फीसदी आबादी कांगड़ा के जंगलों में पाई गई है। दुनियाभर में प्रजाति के करीब 10 हजार गिद्ध हैं। कांगड़ा में इस प्रजाति के 1,800 से 2,000 हजार के करीब गिद्ध होने का अनुमान है। ये गिद्ध पाकिस्तान बॉर्डर तक उड़ान भर रहे हैं। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून की शोधार्थी माल्याश्री भट्टाचार्य के चार साल के शोध में यह खुलासा हुआ है। माल्याश्री देहरादून में गिद्धों की नेस्टिंग के विषय पर पीएचडी कर रही हैं। रिसर्च टीम में डॉ. गौतम तालुकदार और फील्ड असिस्टेंट मनोज कुमार भी शामिल रहे हैं।
ये है गिद्धों के बढ़ने का कारण
शोध में खुलासा हुआ है कि गिद्धों के कांगड़ा में पाए जाने और लगातार बढ़ने के पीछे चीड़ के घने जंगल और नेचुरल हड्डी खाने हैं। कांगड़ा में 36 प्राकृतिक हड्डी खाने पाए गए हैं। अधिकतर सरकार की ओर से संरक्षित नहीं किए गए हैं। ये हड्डी खाने मृत पशुओं को यहां फेंके जाने से संचालित हो रहे हैं। हड्डी खानों की बदौलत गिद्धों को खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में खाना मिल रहा है। शाहपुर के समीप डोलबा, ब्रंजसिरमनी, हरनेरा, नगरोटा सूरिया के लालपुर जंगल में अधिकतर घोंसले पाए गए हैं। गोपालपुर जू के समीप भी जंगल में घोंसला मिला है।
एक दिन में अधिकतम 180 किमी तक उड़ान का रिकॉर्ड
शोध में पांच गिद्धों पर ट्रांसमीटर चिप लगाकर उनकी दैनिक गतिविधियों को ट्रैक किया गया। ट्रैकिंग में पाया गया है कि एक गिद्ध दिनभर में अधिकतम 180 किमी की उड़ान भरता है। एक दिन में कांगड़ा से पाकिस्तान बाॅर्डर के कसूर नामक जगह तक उड़ान का रिकॉर्ड दर्ज हुआ है। गिद्ध ने भारत की सीमा को कभी पार नहीं किया है।
क्यों जरूरी हैं गिद्ध
पारिस्थितिक तंत्र के लिए गिद्ध बेहद महत्वपूर्ण हैं। गिद्धों के झुंड कुछ ही समय में मुर्दा जानवरों के शरीर से मास को चट कर जाते हैं, ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा शून्य हो जाता है। लंबे चीड़ के पेड़ों पर गिद्धों की 17 कॉलोनी और कुल 553 पेड़ों पर 617 घोंसले पाए गए हैं। एक घोंसले में कम से कम तीन गिद्धों का आश्रय माना जाता है। अंडे से निकलने के तीन महीने बाद गिद्ध का बच्चा उड़ना शुरू करता है। दो साल तक वह घोंसले में लौटता रहता है। घोंसलों की संख्या के लिहाज से कांगड़ा जिले में 1,800 से 2,000 गिद्ध होने का अनुमान है।