# हरे-भरे हिमाचल के बदले 50 साल बाद राजस्थान की रेतीली भूमि भी नहीं मिली|

loksabha Election Issue: After 50 years, instead of lush green Himachal, even the sandy land of Rajasthan was

रीब 20,722 परिवारों ने पौंग बांध निर्माण के लिए अपनी उपजाऊ जमीन और घर देश के नाम कर दिए।  अब 50 साल बाद हरे भरे हिमाचल के बदले राजस्थान की रेतीली भूमि भी नहीं मिल रही है।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की हल्दून घाटी के करीब 20,722 परिवारों ने पौंग बांध निर्माण के लिए अपनी उपजाऊ जमीन और घर देश के नाम कर दिए। रिश्ते-नाते छोड़ दिए। अब 50 साल बाद हरे भरे हिमाचल के बदले राजस्थान की रेतीली भूमि भी नहीं मिल रही है। इसके लिए विस्थापित आज भी दर-दर भटक रहे हैं। किसी भी दल के नेता हों, हर चुनाव में पौंग बांध विस्थापितों को न्याय दिलाने का आश्वासन देते हैं और बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद सब कुछ भूल जाते

अभी 20,722 परिवारों में से 2538 को ही भूमि मिल पाई है। विस्थापितों से भूमि इस शर्त पर ली गई थी कि पहले उन्हें भूमि व मकान आवंटित किए जाएंगे। इस आस में लोगों ने भी अपनी भूमि और घर दिए, लेकिन बदले में मिली तो सिर्फ ठोकरें। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 1997 में बनी हाई पावर कमेटी की 29 बैठकें भी बेनतीजा ही रहीं। विस्थापितों के हक-हकूक की आवाज सिस्टम के आगे गौण ही रही। अब तो नेताओं ने इनकी आवाज उठाना भी बंद कर दिया है। जिले के करीब 16,352 परिवार मुआवजा और पुनर्वास के लिए अधिकृत हुए थे। 

राजस्थान में 2.20 लाख एकड़ जमीन देने पर बनी थी सहमति 
15 हजार से अधिक परिवारों को समझौते के अनुसार राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में 2.20 लाख एकड़ रेतीली जमीन में बसाने पर सहमति बनी थी। 4,370 भूमिहीन और लेबर से संबंधित लोगों को भी राजस्थान में बसाने व कृषि के लिए भूमि देने पर सहमति बनी।  1980 तक 9196 परिवारों को राजस्थान सरकार ने भूमि आवंटित तो कर दी, लेकिन 6658 अलॉटमेंट किसी कारणवश रद्द कर दी गई। इनमें से 1188 मुरब्बे राज रकबे थे। उन पर वहां के बाहुबली काबिज हैं। राजस्थान के दो हजार से अधिक अन्य कब्जाधारकों ने भी हिमाचलियों को आवंटित भूमि हथिया रखी है।

राजस्थान सरकार उन्हें बिजली-पानी की सुविधा दे रही है। श्रीगंगानगर के प्रथम चरण में रिकॉर्ड के हिसाब से 2538 लोगों को ही भूमि मिल पाई है। न चाहते हुए भी कई विस्थापित द्वितीय चरण में भूमि लेने को मजबूर हो गए या हो रहे हैं। करीब सात हजार परिवार आज भी भूमि के लिए दर-दर भटक रहे हैं।  3-4 सितंबर,1970 को भारत सरकार की अध्यक्षता में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व हिमाचल के मुख्यमंत्रियों की सहमति पर एग्रीमेंट के तहत विस्थापितों के पुनर्वास के लिए श्रीगंगानगर में 2.20 लाख एकड़ भूमि आरक्षित की गई। पौंग बांध के पानी से 360 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है।

20,722 परिवारों ने दी खेती वाली उपजाऊ जमीन
सुलझा रहे हैं मामला 
 बतौर सांसद विस्थापितों का मामला मैंने केंद्र के समक्ष उठाया था। केंद्र ने लोगों का पक्ष जाने बिना इको सेंसेटिव जोन की अधिसूचना जारी की। प्रदेश सरकार ने इस पर आपत्ति जताई है। मामले को सुलझाया जा रहा है। -चंद्र कुमार चौधरी, पूर्व सांसद और कृषि एवं पशुपालन मंत्री हिमाचल

समाधान के दिए हैं निर्देेश
मामला समय-समय पर केंद्र सरकार, बीबीएमबी प्रबंधन के सामने उठाया। धर्मशाला में बीबीएमबी और प्रशासन की बैठक हुई थी। इसमें लंबित मामले को जल्द सुलझाने के निर्देश दिए गए हैं।

समझौते के विपरीत द्वितीय चरण में बुनियादी सुविधाओं रहित राजस्थान के अति दूरस्थ क्षेत्र में भूमि दी जा रही है। केंद्र और राज्य सरकारें विस्थापितों के मामले में असंवेदनशील बनी हैं।  

विस्थापितों का मुद्दा का दशकों पुराना है। इसका समाधान कराने की दिशा में कोशिश कर रहे हैं। सरकार सभी बातों को लेकर गंभीर है। 

भू-आवंटन की 15,663 फाइलें राजस्थान भेजी जा चुकी हैं। मुआवजे का मामला सरकार के ध्यान में लाया जाएगा।

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