
कांग्रेस आठ सीटों पर प्रत्याशी तय नहीं कर पाई है तो भाजपा को यह साफ-साफ मालूम नहीं है कि किस-किस पहलवान से मुकाबला होने जा रहा है।
हमीरपुर और कांगड़ा लोकसभा सीटों सहित धर्मशाला, सुजानपुर, बड़सर, गगरेट, कुटलैहड़ तथा नालागढ़ विधानसभा हलकों में हिमाचल प्रदेश के दोनों राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा एक तरह के असमंजस में ही प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस इन आठ सीटों पर प्रत्याशी तय नहीं कर पाई है तो भाजपा को यह साफ-साफ मालूम नहीं है कि किस-किस पहलवान से मुकाबला होने जा रहा है। ऐसे में सभी प्रत्याशियों के तय होने के बाद ही दोनों ओर से संशय के बादल छंटेंगे। फिलहाल सुक्खू सरकार जहां सभी सीटों पर केंद्र सरकार की अनदेखी को बड़ा मुद्दा बनाए है, वहीं छह विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में भाजपा का टिकट लेने वाले कांग्रेस के छहों बागी ही इसके निशाने पर हैं।
वहीं, भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की नीतियों का बखान करते हुए ही प्रचार कर रही है और यही हवा बनाकर सभी सीटों पर कांग्रेस को बहा ले जाने की योजना का बांध बना रही है। हिमाचल प्रदेश में चार सीटों के लोकसभा चुनाव और छह विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव के लिए अभी वक्त है। अंतिम चरण में होने जा रहे इन चुनावों के लिए एक महीने से अधिक वक्त है। चुनाव की अधिसूचना सात मई को होनी है। नामांकन की अंतिम तारीख 14 मई है और मतदान एक जून को है।
भाजपा ने 13 मार्च को हमीरपुर से अनुराग ठाकुर को हमीरपुर और सुरेश कश्यप को शिमला से उम्मीदवार घोषित किया और 24 मार्च को मंडी से कंगना रणौत व कांगड़ा से सुरेश कश्यप को प्रत्याशी बनाया। 26 मार्च को विधानसभा से सदस्यता जाने के बाद कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आए छहों पूर्व विधायकों को टिकट दिए। कांग्रेस ने लंबे मंथन के बाद 13 अप्रैल को केवल दो सीटों-मंडी से विक्रमादित्य सिंह और शिमला से विनोद सुल्तानपुरी को प्रत्याशी बनाया है। बाकी आठ सीटों पर उम्मीदवारों का चयन नहीं किया जा सका है।
ऐसे में भाजपा जहां सभी दसों प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर प्रचार कर रही है, वहीं कांग्रेस ने अभी आठ सीटों पर इनसे मुकाबिल होने के लिए योद्धा नहीं उतारे हैं। भाजपा ने टिकटों को तय करने में जहां सबसे पहले उत्साह दिखाया तो कांग्रेस इस मामले में फूंक-फूंककर कदम रखना चाह रही है।
दोनों ही दल अलग-अलग रणनीतियों पर कर रहे काम
दोनों ही दल अलग-अलग रणनीतियों पर काम कर रहे हैं। इतना तय है कि जैसे ही कांग्रेस के प्रत्याशी मैदान में होंगे तो तस्वीर साफ होगी। दोनों दलों की प्राथमिकताएं तय हो जाएंगी कि उन्हें किस जाति, क्षेत्र और समीकरण पर अधिक काम करने की जरूरत है और किस तरह के मुद्दों को बड़ा हथियार बनाने की। भाजपा लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने के प्रयास में है तो कांग्रेस को उपचुनाव में झटकी मंडी लोकसभा सीट को बचाने के साथ अन्य तीन सीटों पर जीत की चुनौती है। उपचुनाव में भी दोनों दलों की प्रतिष्ठा जुड़ी है। भाजपा उपचुनाव जीतकर उत्तर भारत की अकेली कांग्रेस सरकार को शिथिल करने की योजना पर काम करती दिख रही है तो कांग्रेस यहां भाजपा के मंसूबे को धराशायी कर अपनी रीढ़ को और मजबूत करना चाह रही है।