शिमला में विलुप्त होने के कगार पर 150 साल पहले बने बर्फ के कुएं, पढ़ें रोचक जानकारी

Snow Pits built 150 years ago in Shimla are on the verge of extinction

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में कुछ दिन पहले हुए हिमपात के बाद जहां बर्फ पूरी तरह पिघल गई है, वहीं जाखू के बर्फ के कुएं में छह दिन बाद भी बर्फ देखी जा सकती है। बर्फ के कुओं को स्नो पिट्स कहा जाता है। इनका निर्माण 150 साल पहले ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था। इनका उपयोग उस दौरान बर्फ इकट्ठा करने के लिए किया जाता था। आज यह धरोहर आधुनिकता और जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं तथा इनका अस्तित्व अब खत्म होने लगा है। यह कुएं जमीन में पानी की मात्रा बढ़ाने का भी काम करते थे। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जाखू, हार्विंगटन, वाइल्ड फ्लावर हॉल, बार्न्स कोर्ट और हरकर्ट बटलर स्कूल (अब केंद्रीय विद्यालय जाखू) के आसपास ऐसे छह से अधिक बर्फ के कुएं हुआ करते थे। 

अंग्रेजी हुकूमत  में छह से अधिक बर्फ के कुएं थे
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जाखू, हार्विंगटन, वाइल्ड फ्लावर हॉल, बार्न्स कोर्ट और हरकर्ट बटलर स्कूल (अब केंद्रीय विद्यालय जाखू) के आसपास ऐसे छह से अधिक बर्फ के कुएं हुआ करते थे। इन कुओं को पत्थर की दोहरी परतों से तैयार किया है। बर्फबारी के दौरान ठंडी छायादार जगहों से काटी बर्फ को इन कुओं में भरा जाता था। ब्रिटिश अधिकारी बर्फ का उपयोग अपने लिए प्राकृतिक रेफ्रिजरेटर के रूप में करते थे। स्थानीय लोग बर्फ खरीदकर कुल्फी और शीतल पेय जैसे उत्पाद तैयार करते थे। बर्फ को दोहरी दीवारों वाले टीन के बक्सों में रखा जाता था और इसे जूट के थैलों में पैक करके आसपास के क्षेत्रों तक पहुंचाया जाता था।

365 दिन सुरक्षित रहती थी बर्फ
हर साल की पहली बर्फबारी के साथ इन कुओं को भर दिया जाता था और यह बर्फ पूरे 365 दिन सुरक्षित रहती थी। बर्फ संग्रहण के लिए ही नहीं, बल्कि शिमला के प्राकृतिक झरनों को पोषित करने का काम भी करती थी। इन कुओं से रिसने वाले बर्फ का पानी झरनों तक पहुंचता था जो पूरे साल पीने के पानी और सिंचाई का स्रोत बने रहते थे। लेकिन आज झरने भी सूख चुके हैं और इस धरोहर का पर्यावरणीय योगदान भी समाप्त होने लगा है। वर्तमान में इन बर्फ के कुओं की स्थिति दयनीय है। जाखू के आसपास स्थित कुछ कुएं अभी बचे हैं। केंद्रीय विद्यालय जाखू में बर्फ के कुएं को भरकर उस पर खेल मैदान बन चुका है। मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 1901 से 2023 के बीच में शिमला के औसतन तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस बढ़ते तापमान के साथ लगातार शिमला में कम बर्फ गिर रही है।

बर्फ के कुओं का संरक्षण जरूरी : डॉ. केसी शर्मा
इतिहासकार एवं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय संजौली के पूर्व प्रधानाचार्य डाॅ. केसी शर्मा ने बताया कि आज शिमला में बर्फबारी दुर्लभ घटना बन गई है। शहर का मौसम लगातार बदल रहा है। ऐसे में इन बर्फ के कुओं का महत्व समझने और उन्हें संरक्षित करने की जरूरत पहले से अधिक है। यह धरोहर न केवल अतीत की एक झलक है, बल्कि यह हमें उस समय की जलवायु, तकनीक और संसाधन प्रबंधन के बारे में भी बताती है। समय रहते इनका संरक्षण नहीं किया तो यह अमूल्य धरोहर इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी।

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