एक गुट सांसदों को कमान देने के पक्ष में, दूसरा बिंदल की सरदारी को रिपीट करवाने के; तीसरा खामोश

Himachal BJP One faction is in favor giving command to MPs other repeating Bindal leadership third is silent

हिमाचल में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का फैसला तीन गुटों की खींचतान में फंस गया है। एक गुट सांसदों को कमान देने के पक्ष में है तो दूसरा डॉ. राजीव बिंदल की सरदारी को रिपीट करवाना चाह रहा है। पार्टी का तीसरा खेमा खामोश है और ऊंट किस करवट बैठता है, इसका इंतजार कर रहा है। यहां भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव दिसंबर में होना तय माना जा रहा था, मगर जनवरी के बाद अब फरवरी भी बीतने को है। अब यही माना जा रहा है कि मार्च में फैसला होगा। देश के कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। हिमाचल उन राज्यों में शुमार है, जहां खूब माथापच्ची करनी पड़ रही है।

बेशक हिमाचल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का गृह राज्य है, मगर यहां भी पार्टी अंदरखाते कई गुटों में बंटी है। यह अलग बात है कि भाजपा की गुटबाजी कांग्रेस की तरह पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं है, मगर परदे के पीछे खूब रस्साकशी चल रही है। इस रस्साकशी में दो खेमे अपना-अपना दम दिखा रहे हैं। इनमें एक गुट को नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर से जोड़़ा जा रहा है, जो लोकसभा सांसद राजीव भारद्वाज को अध्यक्ष बनाने का प्रबल हिमायती माना जा रहा है। इसके लिए यह गुट हिमाचल में संगठन के अंदर जातीय और क्षेत्रीय संतुलन का आधार पेश कर रहा है। राजीव भारद्वाज ब्राह्मण समुदाय से हैं और कांगड़ा जिला से संबंध रखते हैं। यह खेमा राजीव भारद्वाज के नाम पर सहमति नहीं बनने की स्थिति में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. सिकंदर कुमार को बनाए जाने से भी संतुष्ट हो सकता है।

डॉ. सिकंदर अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं और मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के जिला हमीरपुर से हैं। यही नहीं, किसी और को अध्यक्ष बनाने के बजाय इस गुट को संभवतया इंदु गोस्वामी को अध्यक्ष बनने से भी शायद उतनी परेशानी न हो। इंदु गोस्वामी भी जिला कांगड़ा से संबंधित हैं और वह भी ब्राह्मण समुदाय से हैं। दूसरा खेमा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल को रिपीट करवाना चाह रहा है। यह उम्मीद लगाए बैठा है कि पड़ोसी राज्यों जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में भी भाजपा प्रदेश अध्यक्षों को रिपीट किया गया है तो हिमाचल में भी ऐसा हो सकता है। अब तक फैसला न होने के पीछे भी यह माना जा रहा है कि पार्टी के लिए डॉ. राजीव बिंदल का चुनावी प्रबंधन उपयोगी साबित हो सकता है।

डॉ. बिंदल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा की भी गुड लिस्ट में हैं। अगर नड्डा की पसंद बिलासपुर के भाजपा विधायक त्रिलोक जम्वाल को पार्टी अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो वह डॉ. राजीव बिंदल पर एक बार फिर से भरोसा कर सकते हैं। त्रिलोक जम्वाल एक इसी कारण से अध्यक्ष नहीं बनाए जा सकते हैं कि वह विधायक हैं। अगर पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर विधायकों को पार्टी की कमान नहीं देने का निर्णय लेती है, वह केवल तभी इस रेस से बाहर होंगे। तीसरा खेमा धूमल और अनुराग ठाकुर से संबंधित बताया जा रहा है, जिसकी हिमाचल प्रदेश में कार्यकर्ताओं के बीच बहुत पुरानी जड़ें हैं। भाजपा के मिशन रिपीट में कामयाब नहीं होने और उपचुनाव में हार के पीछे भी इस गुट को हाशिये पर धकेला जाना बताया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह तीसरा खेमा फिलहाल खामोश है और उचित वक्त का इंतजार कर रहा है। वहीं, हिमाचल प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी संजय टंडन का कहना है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पर केंद्रीय नेतृत्व जल्दी निर्णय लेगा।

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