
हिमाचल प्रदेश में सात सालों में 1,406 पंचायतों ने मनरेगा में एक भी पैसा खर्च नहीं किया। 2015 से 2021 तक की सोशल आडिट रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। साल 2015 में 68, 2016 में 26, 2017 में 34, 2018 में 424, 2019 में 425, 2020 में 418 और 2021 में 11 पंचायतों ने मनरेगा में पैसा खर्च नहीं किया। केंद्र सरकार की ओर से राज्यों के सहयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किया गया है। योजना का क्रियान्वयन पंचायतों की ओर से किया जा रहा है। मनरेगा में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को साल में 100 दिनों के लिए रोजगार की गारंटी का अधिकार है।
हिमाचल में 120 दिन का रोजगार दिया जा रहा
हिमाचल में 120 दिन का रोजगार दिया जा रहा है। बावजूद इसके पंचायतों की ओर से पैसा खर्च न करना गंभीर मामला है। सोशल ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार सात वर्षों में 10,803 दिव्यांग लोगों ने मनरेगा में काम किया है। साल 2021 में सबसे अधिक 1,877 दिव्यांग लोगों ने मनरेगा में कार्य किया है। इसके अतिरिक्त बीते सात सालों के दौरान वित्त वर्ष 2020-21 में सबसे अधिक 9.96 लाख और वित्त वर्ष 2020-21 में 8.92 लाख लोगों ने मनरेगा में काम किया है। प्रति व्यक्ति प्रति दिन औसत मजदूरी साल 2015-16 में जहां 161.24 रुपये थी 2021-22 में बढ़ कर 202.12 रुपये हो गई। सात सालों में औसत मजदूरी में 40.88 रुपये का इजाफा हुआ है। हिमाचल में बीते साल मनरेगा की दिहाड़ी में 60 रुपये का राज्य सरकार ने योगदान दिया है।
जनजातीय, दुर्गम और दूरदराज के क्षेत्रों में मनरेगा को लेकर कम रुझान है, इसलिए पंचायतों में पैसा खर्च नहीं हुआ है। सोशल ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार दिव्यांग लोग भी मनरेगा के में रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, सात साल में औसत मजदूरी करीब 40 रुपये बढ़ी है, बीते साल दिहाड़ी में 60 रुपये का हिस्सा प्रदेश सरकार का था।