विदेशों से आई नई किस्में ग्राफ्ट कर 1500 रुपये तक दिहाड़ी कमा रहे युवा, सीजन में भारी मांग


 

Himachal Youth earning up to Rs 1500 per day by grafting new varieties imported from abroad huge demand

विदेशों से आई सेब की नई किस्में ग्राफ्ट कर युवा 1500 रुपये तक दिहाड़ी कमा रहे हैं। ग्राफ्टिंग का काम करने वालों को हाथ की सफाई का मुंह मांगा इनाम मिल रहा है। ग्राफ्टिंग सीजन के दौरान ग्राफ्टरों की भारी मांग के चलते बागवान अपनी गाड़ियों में इन्हें इनके घरों से बगीचे तक पहुंचाते हैं। सेब की पुरानी किस्म बदलकर नई विकसित करने के लिए टॉप ग्राफ्टिंग भारी प्रचलन में है। ग्राफ्टिंग करने वालों को अपने काम में इतनी महारत हासिल है कि इनकी की हुई एक भी कलम फेल नहीं होती। 

हर साल 15 फरवरी के बाद ग्राफ्टिंग का काम शुरू होता है। शिमला और कुल्लू जिले के ग्राफ्टरों की इस काम के लिए पूरे प्रदेश में मांग है। ग्राफ्टिंग के लिए कुछ युवा स्विट्जरलैंड की कंपनी के चाकू इस्तेमाल कर रहे हैं तो कुछ ने अपने चाकू बनाने शुरू कर दिए हैं। बागवान अधिकतर सेब की पुरानी किस्मों रेड, रिचर्ड, रेड गोल्डन और गोल्डन को ग्राफ्टिंग कर नई किस्मों में बदल रहे हैं। रेड गोल्डन के पेड़ों को ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गाला किस्म की फैन प्लस, निचले क्षेत्रों में डार्क बैरॉन किस्मों से बदला जा रहा है। रेड किस्म के पेड़ों को और निचले क्षेत्रों में हैपके और अर्ली रेड वन, निचले क्षेत्रों में जेड वन, रेड बिलॉक्स व किंग रॉट में बदला जा रहा है। गोल्डन किस्म को ऊंचाई क्षेत्रों में ग्रेनी स्मिथ, निचले क्षेत्रों में गाला किस्मों से बदला जा रहा है।

कोटखाई के अनीश 10 सालों से कर रहे ग्राफ्टिंग 
शिमला जिले के कोटखाई के रहने वाले ग्राफ्टर अनीश बीते 10 सालों से ग्राफ्टिंग का काम कर रहे हैं। इन्होंने अपने चाचा से यह काम सीखा है। अनीश बताते हैंं कि ग्राफ्टिंग सीजन में एक भी दिन खाली नहीं रहते। कोटखाई, रोहड़ू, चौपाल, सिरमौर और सुन्नी तक बागवान अनीश से अपने बगीचों में ग्राफ्टिंग करवा रहे हैं। अनीश का कहना है कि बेरोजगार युवा ग्राफ्टिंग तकनीक सीख कर सम्मान के साथ अच्छी कमाई कर सकते हैं।

ग्राफ्टिंग की दो तकनीकें प्रचलित
सेब के पेड़ों में ब्रांच ग्राफ्टिंग और टॉप ग्राफ्टिंग की जाती है। ब्रांच ग्राफ्टिंग में पौधों की सभी शाखाएं ग्राफ्ट की जाती हैं, टॉप ग्राफ्टिंग में पौधे की आधी शाखाएं हटाकर आधी शाखाएं ग्राफ्ट की जाती हैं। हिमाचल में ब्रांच ग्राफ्टिंग का अधिक प्रचलन है। कश्मीर में टॉप ग्राफ्टिंग अधिक होती है। जानकारों का मानना है कि ग्राफ्टिंग के लिए कलम (साइन वुड) ऐसे पौधे से निकाली जानी चाहिए, जिसमें अच्छी क्वालिटी का फ्रूट लिया जा चुका हो। ग्राफ्टिंग के बाद पौधों के कैंकर की चपेट में आने का भी खतरा रहता है।

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