हाईकोर्ट ने कहा- आईएएस अधिकारी के चलते एक पात्र उम्मीदवार पदोन्नति से वंचित, जानें पूरा मामला

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Himachal High Court said a deserving candidate was deprived of promotion due to an IAS officer

हिमाचल प्रदेश में निदेशक कृषि पद पर तैनात आईएएस अधिकारी के चलते विभाग के एक पात्र उम्मीदवार को पदोन्नति से वंचित रखा गया है। इस मामले में प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की सिफारिशों पर पुनर्विचार करने और उसके बाद याचिकाकर्ता को निदेशक के पद पर पदोन्नति के संबंध में उचित आदेश जारी करने के निर्देश दिए हैं। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को निदेशक के पद पर पदोन्नत इसलिए नहीं किया गया, क्योंकि बतौर निदेशक का कार्यकाल कुछ समय के लिए होगा। अदालत ने 15 दिनों के भीतर इस आदेश पर सकारात्मक कार्यवाही करने को कहा है।

अदालत ने 17 अप्रैल 2025 के सरकार के उस निर्णय को खारिज कर दिया है, जिसके तहत डीपीसी की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया था। सरकार ने पदोन्नति से वंचित करने का तर्क दिया कि याचिकाकर्ता कुछ महीने के लिए ही निदेशक रहेगा। यह विभाग में चल रही परियोजना के हित में नहीं होगा। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से मांग की थी कि मुख्य सचिव, वित्त आयुक्त और विभाग के सचिव वाली डीपीसी ने याचिकाकर्ता को पदोन्नति के लिए सिफारिश की थी, जो एकमात्र पात्र उम्मीदवार था। लेकिन मुख्यमंत्री (कार्मिक विभाग के प्रभारी मंत्री) ने डीपीसी की सिफारिश को इस आधार पर मंजूरी नहीं दी कि एक आईएएस सेवा अधिकारी निदेशक कृषि के रूप में तैनात हैं।

विभाग में महत्वपूर्ण परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं और वर्तमान में आईएएस अधिकारी विभाग का संचालन कर रहा है। याचिका में कहा गया कि कृषि निदेशक का पद सौ फीसदी पदोन्नति के माध्यम से भरा जाना आवश्यक है और डीपीसी द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार याचिकाकर्ता निदेशक के पद पर नियुक्त होने के लिए पूरी तरह से पात्र था।

अधिवक्ता ने कहा कि एक आईएएस अधिकारी को निदेशक के रूप में तैनात नहीं किया जा सकता। उधर, सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि डीपीसी की सिफारिशें नियुक्ति प्राधिकारी पर बाध्यकारी नहीं है। याचिकाकर्ता को विचार किए जाने का अधिकार तो है, लेकिन वह पदोन्नति को अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि विभाग की महत्वपूर्ण परियोजनाओं को एक आईएएस अधिकारी संभाल रहे हैं, जो पिछले 2 वर्षों से निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। इसलिए याचिकाकर्ता को निदेशक के पद पर पदोन्नति करना, वह भी केवल दो महीने की अवधि के लिए बड़े पैमाने पर जनता के हित में नहीं हो सकता।

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