
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला में बीते एक दशक से आलू की फसल को लेकर किसानों में क्रांति आई है। यह फसल किसानों की आय का मुख्य जरिया है। इस फसल के बल पर कई किसानों की आर्थिक स्थिति पहले से कई गुना बेहतर हो गई है।
एक दशक पहले बड़े किसान ही इस फसल में भाग्य आजमाते थे। अब छोटे किसानों ने भी फसल तैयार करना शुरू कर दिया है। जिला के हरोली, गगरेट, अंब और ऊना क्षेत्र में सिंचाई सुविधा संपन्न खेतों में किसान आलू की पुखराज किस्म तैयार करते हैं। हालांकि किसानों ने अन्य किस्मों लाल और चिप्स आलू में भी भाग्य आजमाया, लेकिन अच्छा मुनाफा पुखराज में ही कमाया।
जानकारी के अनुसार ऊना में दो माह वाली आलू की फसल करीब 1,800 हेक्टेयर में तैयार होती है। वहीं चार माह वाली फसल को 1,000 हेक्टेयर के आसपास क्षेत्र में तैयार किया जाता हैं। यहां सालाना करीब 54,200 मीट्रिक टन आलू की पैदावार होती है। दो माह वाली फसल सितंबर से नवंबर के बीच तैयार होती है। इस फसल की मांग पंजाब और दिल्ली की मंडियों में बेशुमार रहती है। खाद्य उद्योग में इस ताजे आलू को हाथों हाथ खरीदा जाता है। छोटे ढाबे व रेहड़ी से लेकर बड़े होटल व रेस्टोरेंट में इसका इस्तेमाल विभिन्न खाद्य उत्पादों में होता है। इसे कच्चा आलू भी बोला जाता है। क्योंकि इसके छिलके की परत बिल्कुल पतली होती है।
खाने में मीठा व आसानी से तैयार होने वाले इस किस्म को पंजाब के अमृतसर, लुधियाना, जालंधर के अलावा चंडीगढ़, अंबाला और दिल्ली में खरीदा जाता है। मात्र दो माह में तैयार होने वाली इस फसल में किसानों को मेहनत तो करनी पड़ती है, लेकिन मंडी में मांग अच्छी रहे तो मुनाफा भी अच्छा होता है। उधर, चार माह वाली फसल को तैयार करने की प्रक्रिया लंबी और अधिक मेहनत वाली है। दिसंबर की शुरुआत से अप्रैल माह के भीतर तैयार होने वाली इस फसल की पैदावार दो माह वाली फसल के मुकाबले दोगुना रहती है।
एक कनाल खेत में 15 क्विंटल पैदावार देने वाली इस फसल की औसतन कीमत 1,000 रुपये प्रति क्विंटल तक रहती है। अगर इतने दाम भी मिल जाएं तो पैदावार के बल पर किसान मुनाफा कमा लेते हैं। इसके मुकाबले दो माह वाली फसल की कीमत औसतन 1,500 रुपये प्रति क्विंटल रहती है। हालांकि मंडी में तेजी होने पर कीमत 2,500 रुपये प्रति क्विंटल कर भी रहती है।
उपनिदेशक जिला कृषि विभाग कुलभूषण धीमान ने बताया कि आलू के लिए ऊना का क्षेत्र हर लिहाज के उत्तम है। जिले के मैदानी इलाकों में सिंचाई सुविधा अच्छी है। इसके अलावा यहां की मिट्टी आलू की फसल के लिए बेहतरीन है। यही कारण है कि मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आलू की फसल अच्छे तरीके से तैयार होती है। निश्चित तौर पर यह फसल किसानों की आर्थिक स्थिति के लिए निर्णायक सिद्ध हुई है।
स्वां नदी के आसपास के इलाकों ने बदली नुहार
ऊना जिले में स्वां नदी के तटीकरण का काम 2,000 में शुरू हुआ था और लगभग 20 वर्षों में पूरा हुआ। तटीकरण के बाद नदी के आसपास की रेतीली जमीन में खेती के विकल्प खुल गए। जिस सैकड़ों हेक्टेयर जमीन को नदी की बाढ़ हर साल प्रभावित करती थी, वहां अब आलू की बंपर पैदावार हो रही है। नदी के आसपास जमीन रेतीली है, जिसे आलू के लिए उत्तम माना जाता है। इस इलाके में सिंचाई सुविधा भी उपलब्ध है। किसानों ने अपने स्तर पर ट्यूबवेल लगाए हुए हैं। ऐसे में हर लिहाज से फसल के लिए स्थिति अनुकूल है।
हजारों मजदूरों के लिए खुले रोजगार के द्वार
आलू की फसल को बिजाई से लेकर मंडी तक पहुंचाने में हजारों मजदूरों के लिए रोजगार के विकल्प खुले हैं। स्थानीय लोगों के साथ उत्तर प्रदेश, बिहार के हजारों मजदूर ऊना जिला का रुख करते हैं। फसल की बिजाई से लेकर मंडी पहुंचाने में किसानों का सहयोग करते हैं। कई किसानों ने तो सालभर तनख्वाह पर मजदूरों को स्थाई तौर पर रखा है।