राजा ने रोग मुक्ति पर किया था दशहरा उत्सव का आगाज, जानें रोचक इतिहास

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का शुभारंभ 1660 में कुल्लू के राजा जगत सिंह ने किया। इस परिपाटी को आज भी कुल्लू के ढालपुर में निभाया जाता है। इस बार 24 अक्तूबर को देव महाकुंभ को अठारह करडू के सौह में हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। इस बार प्रशासन ने 332 देवी-देवताओं को देव समागम के लिए निमंत्रण भेजा है। राजा जगत सिंह के शासनकाल में दशहरा में 365 देवी-देवताओं को बुलाया था। बताया जाता है कि राजा जगत सिंह को गंभीर बीमारी से मुक्ति मिलने पर देव महाकुंभ का आयोजन किया। आज भी 21वीं सदी से राजा जगत सिंह की ओर से शुरू की परंपराओं को आज भी निभाया जा रहा है। कुल्लू दशहरा आज भी उसी निष्ठा और आवरण में बंधा है, जो पुराना था। 10 दिन के बाद अठारह करडू के सौह में सैकड़ों देवी-देवता भगवान रघुनाथ के पास हाजिरी भरेंगे। दशहरा उत्सव के आयोजन के पीछे रोचक घटना है। मणिकर्ण घाटी के टिप्परी गांव में ब्राह्मण दुर्गादत्त में रहता था। एक दिन राजा जगत सिंह मणिकर्ण तीर्थ स्नान पर जा रहे थे। किसी ने राजा को झूठी सूचना दी कि दुर्गादत्त के पास एक पाथा मोती है। राजा ने बिना सोचे आदेश दिया कि दुर्गादत्त ने अगर मोती नहीं दिए तो उसे परिवार के साथ मार दिया जाएगा। राजा के सैनिकों के पहुंचने से पहले ही ब्राह्मण ने परिवार को घर में बंद कर आग लगा दी। ब्राह्मण की मौत दोष के चलते राजा गंभीर बीमारी का शिकार हो गया। बीमारी के निजात के लिए किशन दास ने सलाह दी कि वह अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ मूर्ति लाकर कुल्लू में स्थापित कर सारा राजपाट रघुनाथ को सौंपे तो दोष से मुक्ति होगी। इसके बाद दामोदर दास आयोध्य से अंगुष्ठ मात्र मूर्ति को कुल्लू लाए। मूर्ति के स्नान किए पानी के सेवन से राजा को रोग से मुक्ति मिल गई। 1660 में राजा ने पूरा राजपाट रघुनाथ जी के नाम दिया। वे स्वयं इसके छड़ीबरदार बने। इस दौरान यह मूर्ति मकराहड़, मणिकर्ण, हरिपुर, नग्गर होते हुुए कुल्लू पहुंची। भगवान रघुनाथ के कारदार दानवेंद्र सिंह ने कहा कि कुल्लू का दशहरा भगवान रघुनाथ के सम्मान में 1660 से मनाया जा रहा है।

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