# सूखे जैसे हालात , पीला रतुआ की चपेट में आने लगी गेहूं, सब्जियों पर भी खतरा|

हिमाचल न्यूज़ अलर्ट

धर्मशाला जिले में सूखे जैसे हालात और टूटी कूहलों ने किसानों की चिंताओं को बढ़ा दिया है। किसान न तो क्षतिग्रस्त कूहलों के जरिए खेतों की सिंचाई कर पा रहे हैं और न ही इंद्र देवता किसानों पर मेहरबान हो रहे हैं। बारिश न होने के कारण जिले में गेहूं की फसल पर पीला रतुआ रोग का खतरा मंडराने लगा है। समय पर बारिश न होने के कारण फसल पीली पड़ना शुरू हो गई है। साथ ही फसलों की पैदावार पर भी असर पड़ना शुरू हो गया है। फूलगोभी, बंदगोभी, फ्रांसबीन, शलगम, मूली, मटर, टमाटर, प्याज और बैंगन आदि सब्जियों पर भी बारिश न होने से संकट मंडरा रहा है। इन सब्जियों का आकार बढ़ना रुक गई है, वहीं कुछ सब्जियां तो सूखना शुरू हो गई हैं।

दिसंबर और जनवरी में खेतों में गेहूं की फसल के साथ सब्जियों को भी बारिश और सिंचाई की बेहद जरूरत रहती है, लेकिन नवंबर के बाद जिले में एक बार भी बारिश नहीं हुई है। इस वजह से गेहूं की फसल को पानी नहीं मिल पा रहा है और फसल खराब होना शुरू हो गई है। सबसे अधिक दिक्कत चंगर क्षेत्रों में आ रही है, क्योंकि खेती के लिए वे केवल बारिश पर ही निर्भर रहते हैं।

बात करें इंदौरा क्षेत्र की तो वहां पर बरसात के दौरान शाह नहर टूटने से अभी भी करीब 30 गावों के किसानों को खेतों में सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा जिले के अन्य क्षेत्रों में भी यही हाल हैं। इतना ही नहीं, धौलाधार की पहाड़ियों पर भी अभी तक बर्फबारी नहीं हुई है और पहाड़ भी बिना बर्फ के खाली हो गए हैं।
इस वजह से पेयजल स्रोतों के साथ खड्डें और नाले की सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं। खड्डों में पानी न होने के कारण भी किसान कूहलों से खेतों में सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं। वहीं, कई क्षेत्रों में बरसात के मौसम में क्षतिग्रस्त कूहलें आज दिन तक ठीक नहीं हो पाई हैं, जिसके चलते किसान केवल बारिश पर ही निर्भर हो गए हैं, लेकिन बारिश न होने से किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं।

खेतों में नमी न होने के कारण किसान गेहूं की फसल में यूरिया खाद भी नहीं डाल पा रहे हैं, क्योंकि बिना सिंचाई के सूखी भूमि पर खाद असर नहीं करती है। फसलों में यूरिया खाद डालने का यह सबसे सही समय है पर खेतों में नमी न होने के कारण किसान मायूस हैं। जानकारी के अनुसार कांगड़ा में 94 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर गेहूं की खेती की जाती है। इसमें सबसे अधिक खेती इंदौरा के मंड क्षेत्र में की जाती है।

इस समय गेहूं की फसल के लिए बारिश और सिंचाई बेहद जरूरी है। अगर बारिश न होती है को सूखे के कारण फसल खराब होना शुरू हो जाएगी और इसकी पैदावार पर भी इसका खासा असर पड़ेगा। वहीं, सूखे जैसे हालात से सब्जियां भी खराब हो जाएंगी।

जिले में बरसात के मौसम में आई प्राकृतिक आपदा के कारण कई कूहलें टूट गईं थी, जिसमें से कुछ कूहलाें को ठीक करवा दिया गया है। मगर अभी भी कई कूहलों में पानी नहीं है, जिन्हें ठीक करवाया जा रहा है।
दीपक गर्ग, अधिक्षण अभियंता, मंडल धर्मशाला

दो साल पहले हमारे खेतों के पास कूहल टूट गई थी, जो आज दिन तक ठीक नहीं हो पाई है। इस वजह से खेतों में गेहूं की फसल खराब होना शुरू हो गई है।
स्वरूप कुमार, किसान, पासू
खेतों में सिंचाई के लिए वह केवल बारिश पर ही निर्भर रहते हैं। सूखे के कारण अब किसानों को फसलें खराब होने का डर सताने लगा है।

करीब सात कनाल जमीन पर गेहूं की बिजाई की गई है। अगर मौसम की ऐसे ही बेरुखी रही तो बिजाई की कीमत पूरी करना तो दूर गाय के लिए चारा भी नहीं जुटा पाएंगे।
चंचल पाल, किसान, खैरा

रबी फसल की बिजाई के समय थोड़ी नमी के चलते बिजाई की थी, परंतु अब खेती सूखने के कगार पर है। ऐसे तो सूखे जैसे हालात के कारण किसान अपना पैसा और मेहनत भी नहीं जुटा पाएगा।
विनीत जड़वाल, किसान, खैरा रोग के लक्षण?
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह रोग लगने से गेहूं की पत्तियों के ऊपर हल्दी की तरह पीला पाउडर आ जाता है। उसके बाद पत्तियां भूरी होने के बाद सड़ने लगती हैं। गेहूं के पौधे के बढ़वार रुक जाती है। धीरे-धीरे पूरा पौधा नष्ट हो जाता है. जिसके बाद गेहूं की फसल के उत्पादन में भारी गिरावट आती है।
ऐसे करें बचाव
वैज्ञानिकों ने बताया कि पीला रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देते ही फसल में फफूंदनाशक प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करें। इसकी मात्रा 200 मिली लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी में घोल कर बनाएं और फसल पर स्प्रे करें। साथ ही फसल की नियमित निगरानी रखें। खासकर उन फसलों की जो पेड़ों के आसपास बोई गईं हों। उन्होंने बताया कि एडवाइजरी जारी होने के बाद गांवों में टीमें भेजकर रोग के बारे में किसानों को जागरूक किया जा रहा है।

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