सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके शांता कुमार उन युवाओं के लिए प्रेरणस्रोत हैं जो दिशा भटक रहे हैं। आज भी चश्मे का सिर्फ उतना ही प्रयोग करते हैं, जितना पढ़ने के लिए जरूरी हो।
हिमाचल के दिग्गज नेताओं में से एक शांता कुमार राजनीति में आयु सीमा निर्धारण के खिलाफ हैं। जनहित की रचनात्मक सोच, चिंतन और अनुभव की वजह से 90 साल में भी उत्साह से भरे हैं। अपनी अनूठी कार्यशैली की बदौलत प्रदेश के लोगों के दिलों के करीब हैं। सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके शांता उन युवाओं के लिए प्रेरणस्रोत हैं जो दिशा भटक रहे हैं। आज भी चश्मे का सिर्फ उतना ही प्रयोग करते हैं, जितना पढ़ने के लिए जरूरी हो। व्यायाम, योग और नियमित डाइट उनकी जीवनशैली का हिस्सा है। उम्र भले ही ज्यादा है, लेकिन सक्रियता में कोई कमी नहीं। मौसम जो भी हो नियमित व्यायाम और योग करते हैं। बकौल शांता जो रुकता नहीं, थकता नहीं और झुकता नहीं, वो हमेशा जवान है। आइये आपको मिलवाते हैं 90 साल के उत्साही शांता कुमार से…।
शांता कुमार बताते हैं कि रात में 8 घंटे की नींद और दिन में डेढ़ घंटे का विश्राम करते हैं। हालांकि, उम्र के इस पड़ाव में बीच-बीच में नींद टूटती है। रात 10:00 बजे तक सो जाते हैं और सुबह 6:00-6:30 बजे तक उठ जाते हैं। उठते ही 5 पत्ते तुलसी के मुंह में रखते हैं। आजकल ठंड के कारण सुबह हल्का-फुल्का व्यायाम, योग और ध्यान हो पा रहा है। शाम की पाली में भी योग और ध्यान जरूर लगाते हैं। डाइट चार्ट का जिक्र करने पर वह बताते हैं कि ब्रेक फास्ट में 40 फीसदी फल ही लेते हैं। वैसे तो शाकाहारी हूं, लेकिन एक अंडा नाश्ते में जरूर लेता हूं। मल्टी ग्रेन ब्रेड के 2 पीस और एक गिलास दूध साथ में होता है।
दोपहर एक चपाती और रात में दाल-सब्जी व थोड़ी मात्रा में केला आदि कोई एक फल ही मेरी तीन टाइम की डाइट है। शांता ने बताया कि उनकी पीढ़ी का प्रदेश का कोई भी राजनेता अब नहीं है। अब सक्रिय राजनीति में भले ही नहीं हूं, लेकिन देश-प्रदेश की राजनीति और उसकी हलचल पर पूरी नजर रखता हूं। चिंतन-मनन करता हूं। नियमित अखबारों को बारीकी से पढ़ने की आदत छोड़ी नहीं है। अधिकांश समय जनहित में विवेकानंद ट्रस्ट के कार्याें के संचालन और उन्हें आगे बढ़ाने के साथ ही अध्ययन के लिए समर्पित कर रखा है। वर्ष 1977 की अपनी चश्मा पहने तस्वीर दिखाते हुए शांता कहते हैं कि 1977 के आसपास चश्मा लगा था। योग से आंखों की रोशनी में चमत्कारिक बदलाव आया और चश्मा हट गया। इस उम्र में भी पढ़ने के लिए ही चश्मे का इस्तेमाल करता हूं।
संस्कार विहीन हो रही नई पीढ़ी
शांता कहते हैं कि हमारी नई पीढ़ी संस्कार विहीन हो रही है। तकनीकी के इस दौर में बच्चों को घर-परिवार से मिलने वाले संस्कार गायब होकर रह गए हैं। नतीजतन बच्चों और युवाओं को समाज में सही दिशा नहीं मिल पा रही है। यह सभी के लिए गंभीर चिंतन की बात है। नई शिक्षा व्यवस्था के जरिये संस्कारों के होते पतन को थामा जा सकता है। शिक्षा प्रणाली में बच्चों को शुरू से ही नैतिक शिक्षा देने और योग करवाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए।