शिमला संसदीय सीट हमेशा सत्ता का केंद्र रही है। कांग्रेस के कृष्ण दत्त (केडी) सुल्तानपुरी यहां से लगातार छह बार सांसद रहे हैं। सुल्तानपुरी प्रदेश के पहले ऐसे सांसद हैं जिनके नाम यह रिकॉर्ड है।
कभी कांग्रेस का अभेद्य किला रहे शिमला संसदीय सीट पर पिछली तीन बार से भाजपा का कब्जा है। कांग्रेस को अपना दुर्ग फिर से लेना है तो चक्रव्यूह रचना होगा। यह संसदीय सीट हमेशा सत्ता का केंद्र रही है। कांग्रेस के कृष्ण दत्त (केडी) सुल्तानपुरी यहां से लगातार छह बार सांसद रहे हैं। सुल्तानपुरी प्रदेश के पहले ऐसे सांसद हैं जिनके नाम यह रिकॉर्ड है। भाजपा कांगड़ा की तरह यहां से भी जीत का चौका लगाना चाहेगी तो प्रदेश में सत्तासीन कांग्रेस को केडी की विरासत वापस लेने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। उधर, भाजपा ने शिमला से सांसद सुरेश कश्यप को टिकट देकर मनोवैज्ञानिक बढ़त ले ली है।
शिमला संसदीय सीट का ज्यादातर क्षेत्र पहाड़ी है। 1977 में पहली बार भारतीय लोक दल के बालक राम यहां से सांसद चुने गए। इसके बाद 1980 से 1998 तक कांग्रेस के कृष्ण दत्त सुल्तानपुरी ने लगातार छह बार जीत दर्ज की। उनके सामने कोई भी धुरंधर टिक नहीं पाया। इसके बाद धनी राम शांडिल ने 1999 में हिमाचल विकास कांग्रेस से चुनाव लड़कर कांग्रेस के किले में सेंधमारी की।
2004 में हुए चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर फिर जीत दर्ज की। 2009 से अब तक हुए तीन चुनावों में दो बार वीरेंद्र कश्यप और एक बार सुरेश कश्यप ने सीट जीती और भाजपा की हैट्रिक लगाई। पिछले तीन चुनावों से भाजपा की जीत का अंतर हर बार बढ़ा है। 2014 में भाजपा करीब 84 हजार मतों से जीती। 2019 में यह अंतर 3 लाख 27 हजार हो गया।
ये विधानसभा क्षेत्र आते हैं इस सीट में
भाजपा को इस बार भी मोदी फैक्टर की आस है। कांग्रेस के पास शिमला को सरकार में प्रतिनिधित्व देने में विशेष तरजीह देने का तर्क है। शिमला संसदीय क्षेत्र में अर्की, नालागढ़, दून, सोलन, कसौली, पच्छाद, नाहन, श्रीरेणुकाजी, पांवटा साहिब, शिलाई, चौपाल, ठियोग, कसुम्पटी, शिमला शहरी, शिमला ग्रामीण, जुब्बल-कोटखाई और
रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र आते हैं।
जातीय समीकरण, टिकटों पर कांग्रेस का मंथन
टिकटों के लिए कांग्रेस में मंथन जारी है। अमित नंदा, दयाल प्यारी, कौशल मुंगटा, सोहन लाल समेत कई नाम चर्चा में हैं। शिमला संसदीय क्षेत्र में कुल जनसंख्या का 26.51 फीसदी भाग अनुसूचित जाति से संबंधित है। सिरमौर जिले के बड़े इलाके में अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं। सोलन में 28.35 फीसदी अनुसूचित जाति, जबकि 4.42 फीसदी लोग अनुसूचित जनजाति के हैं। सिरमौर में 30.34 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग हैं। यहां पहले केवल 2.13 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की थी।
शिमला से कब कौन बना सांसद
वर्ष विजयी पार्टी
1977 बालक राम भारतीय लोक दल
1980 केडी सुल्तानपुरी कांग्रेस
1984 केडी सुल्तानपुरी कांग्रेस
1989 केडी सुल्तानपुरी कांग्रेस
1991 केडी सुल्तानपुरी कांग्रेस
1996 केडी सुल्तानपुरी कांग्रेस
1998 केडी सुल्तानपुरी कांग्रेस
1999 धनी राम शांडिल हिमाचल विकास कांग्रेस
2004 धनी राम शांडिल कांग्रेस
2009 वीरेंद्र कश्यप भाजपा
2014 वीरेंद्र कश्यप भाजपा
2019 सुरेश कश्यप भाजपा
बीते चार चुनावों में मिले वोट
वर्ष कांग्रेस भाजपा
2019 278668 606183
2014 301786 385973
2009 283619 310946
2004 311182 203002
प्रमुख मुद्दे
विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाना
हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा दिलाने पर फंसा पेच
जंगली-जानवरों से फसलों की रोकथाम
पेयजल, सिंचाई, स्वास्थ्य और सड़कों की स्थिति
परवाणू-शिमला फोरलेन के निर्माण में देरी
संसदीय क्षेत्र में 17 में से 13 विधायक कांग्रेस के
शिमला सीट में 17 विधानसभा क्षेत्र हैं। वर्ष 2022 के विस चुनाव में 13 पर कांग्रेस, तीन पर भाजपा और एक सीट पर निर्दलीय विधायक ने जीत दर्ज की है। इसमें तीन जिले शिमला, सोलन और सिरमौर आते हैं। शिमला के सात, सोलन और सिरमौर के पांच-पांच विस क्षेत्र शामिल हैं। विस चुनाव में सोलन जिले की पांच सीटों में से एक में भी भाजपा खाता नहीं खोल पाई थी। चार पर कांग्रेस और एक पर निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई। शिमला जिले की सात में से केवल एक ही सीट भाजपा जीत पाई। सिरमौर की 5 सीटों में से दो पर ही भाजपा है।
महासू से शिमला हुआ नाम
वर्ष 1967 में प्रदेश की चौथी लोकसभा सीट शिमला (आरक्षित) बनाई गई। इससे पहले यह मंडी-महासू लोकसभा सीट थी। दूसरे चुनाव में इसे महासू कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह ने 1962 में महासू सीट से चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत दर्ज की। 1967 में महासू सीट को शिमला (एससी) सीट बनाया गया।