# सिर्फ शिवरात्रि मेले में ही मिलता है लुच्ची के स्वाद को चखने का मौका…

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 हर त्योहार और मेले की अपनी एक अलग विशेषता होती है। यह विशेषता आपको रहन-सहन, पहनावे और खान-पान में देखने को मिलती है। बहुत से त्योहार और मेलों का खान-पान से विशेष नाता है क्योंकि इन त्योहारों और मेलों के दौरान हमें कुछ ऐसे पकवान खाने को मिलते हैं, जिनका इन्हीं के साथ नाता होता है। ऐसा ही एक पकवान है लुच्ची। लुच्ची को खाने का मौका वर्ष में सिर्फ एक बार ही मिलता है और यह मौका होता है मंडी का शिवरात्रि मेला। मंडी के पड्डल मैदान में यह मेला अभी भी सजा हुआ है।

मेले में लुच्ची के दर्जनों स्टाल तो लगे ही हैं, साथ ही शहर की हर गली और चौराहे पर भी इसकी खूब बिक्री हो रही है। लुच्ची को मैदे से बनाया जाता है। आप इसे एक तरह की रुमाली रोटी भी कह सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इसे वनस्पति घी में तलकर बनाया जाता है। बीते करीब 40 वर्षों से लुच्ची को बनाने वाले मंडी निवासी दलीप कुमार ने बताया कि लोग शिवरात्रि के दौरान बहुत बड़ी संख्या में इसका स्वाद चखना नहीं भूलते। लुच्ची को चने और नॉन वेज के साथ परोसा जाता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि शिवरात्रि मेले के दौरान लुच्ची खाने का अपना ही एक अलग मजा होता है।


कोई पारंपरिक व्यंजन नहीं है लुच्ची, फिर भी है सबकी पसंद
बता दें कि लुच्ची हिमाचल प्रदेश या फिर मंडी जिला का कोई पारंपरिक व्यंजन नहीं है। मंडी का राज परिवार बंगाल से यहां आया था और इस रेसिपी को भी अपने साथ लेकर आया था। इतिहासकार धर्मपाल बताते हैं कि पारंपरिक व्यंजन न होने के बाद भी लुच्ची आज लोगों के स्वाद की पसंद बन चुकी है। बंगाल में लुच्ची और हलवे को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, लेकिन मंडी में इसे नॉन वैज के साथ खाने का प्रचलन काफी बढ़ गया है।


अभी जारी है पड्डल मैदान में शिवरात्रि का मेला
स्वाभाविक रूप से जब कोई पकवान आपको वर्ष में सिर्फ एक बार खाने को मिले तो उसे खाने की लालसा अधिक बढ़ जाती है। यही कारण है कि शिवरात्रि मेले में आने वाले इसका स्वाद चखना नहीं भूलते और कुछ लोग तो मेले का इंतजार ही शायद इस पकवान के लिए करते हैं। यहां आपको यह भी बता दें कि मंडी में मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव अधिकारिक तौर पर सिर्फ सात दिन ही मनाया जाता है, लेकिन इस महोत्सव पर आयोजित होने वाला मेला पूरे एक महीने तक जारी रहता है। इन दिनों यह मेला मंडी शहर के ऐतिहासिक पड्डल मैदान में सजा हुआ है।

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