कांग्रेस ने अब विधानसभा उपचुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव भी आक्रामक तरीके से लड़ने को नई बिसात बिछा दी है।
हिमाचल में कांग्रेस दो विधायकों को लोकसभा चुनाव में उतारकर भी राज्य सरकार में बहुमत कायम रखने का संदेश देने की तैयारी में है। कांग्रेस ने अब विधानसभा उपचुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव भी आक्रामक तरीके से लड़ने को नई बिसात बिछा दी है। व्यवस्था परिवर्तन के नारे पर चलते हुए दोनों तरह के चुनावों के लिए कांग्रेस ने अलग-अलग रणनीति बनाते हुए भाजपा को घेरने की कार्ययोजना बनाई है। लोकसभा चुनाव को हल्के में नहीं लेते हुए कांग्रेस अब मंडी संसदीय क्षेत्र से मंत्री विक्रमादित्य सिंह और शिमला से विधायक विनोद सुल्तानपुरी को चुनाव लड़ाने की तैयारी में है।
मंडी सीट विक्रमादित्य सिंह के परिवार की परंपरागत सीट रही है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह तीन-तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। शिमला सीट से विनोद सुल्तानपुरी के पिता दिवंगत केडी सुल्तानपुरी लगातार छह बार सांसद रह चुके हैं। इन आंकड़ों पर गौर करते हुए ही कांग्रेस ने अब मंडी और शिमला से युवा विधायकों को चुनाव मैदान में उतारने का मन बनाया है। पार्टी के परंपरागत वोट सहित दोनों युवा नेताओं की कार्यक्षमता पर विश्वास करते हुए कांग्रेस ने पूरी मजबूती से लोकसभा चुनाव लड़ने की योजना तैयार की है।
उधर, विधानसभा उपचुनाव के लिए सुक्खू सरकार के 15 माह के कार्यकाल और भाजपा के असंतुष्टों पर फोकस करते हुए बहुमत में रहने की योजना को लेकर कांग्रेस चुनावों में जाएगी। कांग्रेस हाईकमान ने हिमाचल प्रदेश में फ्रंटफुट पर रहकर चुनाव लड़ने का मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह को फ्री हैंड दे दिया है। वर्तमान में 62 विधायकों की संख्या वाले सदन में कांग्रेस के 34 और भाजपा के हैं 25 विधायक हैं। छह विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं।
छह विस सीटें हार कर भी सरकार बहुमत में रहेगी
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद मंजूर होते हैं तो सदन 65 विधायकों का ही रहेगा। अगर उपचुनाव में कांग्रेस सभी छह सीटों पर हार भी जाती है तो भी भाजपा बहुमत के पास नहीं पहुंच सकेगी। सभी उपचुनाव जीत कर भी भाजपा के विधायकों की संख्या 25 से बढ़कर 31 ही होगी। लोकसभा चुनाव में दोनों विधायक अगर जीत जाते हैं तो कांग्रेस के विधायकों की संख्या 34 से घटकर 32 रहेगी।
इस स्थिति में बहुमत साबित करने के दौरान कांग्रेस और भाजपा को 31-31 मत प्राप्त होंगे। मुकाबला बराबरी पर रहने से विधानसभा अध्यक्ष का मत निर्णायक होगा। अगर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दोनों विधायक हार जाते हैं तो विधायकों की संख्या 34 ही रहेगी जबकि भाजपा सभी सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद भी 31 के आंकड़े तक ही रहेगी। कांग्रेस के एक विधायक की जीत और दूसरे की हार होने पर कांग्रेस के पास 33 विधायक रहेंगे। अगर कांग्रेस उपचुनाव में एक भी सीट जीत गई तो सरकार और मजबूत ही होगी।
देहरा, हमीरपुर और नालागढ़ में 1 जून को उपचुनाव पर संशय
तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफों का मामला अभी विधानसभा अध्यक्ष के पास लंबित है। नालागढ़, हमीरपुर और देहरा में एक जून को ही चुनाव होने पर संशय बना हुआ है। जानकार बताते हैं कि अगर विधानसभा अध्यक्ष ने मई के पहले सप्ताह के बाद निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए तो इन सीटों पर चुनाव आगामी छह माह के भीतर होंगे। ऐसे में सरकार को स्थिर रखने में कांग्रेस को बड़ी परेशानी नहीं होगी। विधायकों को लोकसभा चुनाव लड़ाने के पीछे भी यही बड़ा कारण माना जा रहा है।
गगरेट से हो सकती हैं महिला प्रत्याशी
विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन में हर कदम फूंक-फूंक कर रही कांग्रेस गगरेट से किसी महिला को भी प्रत्याशी बना सकती है। सियासी गलियारों में इसकी खूब चर्चा है। युवा और नये चेहरे पर कांग्रेस यहां से दांव खेलने की तैयारी में है। बीते दिनों दिल्ली में हुई पार्टी की बैठक में इस बाबत चर्चा भी हुई है। संभावित है कि कांग्रेस इस टिकट से प्रत्याशी को सभी को चौंका भी सकती है।