# शिमला का कौन ? सुल्तानपुरी या सुरेश?

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हिमाचल प्रदेश की शिमला संसदीय सीट के समीकरण भी बड़े ही चौंकाने वाले हैं और इस बार मुकाबला भी कांटे की टक्कर का है। एक तरफ पिछली बार के रिकॉर्ड तोड़ विजेता सुरेश कश्यप हैं तो दूसरी तरफ केडी सुल्तानपुरी के बेटे और कसौली से विधायक विनोद सुल्तानपुरी हैं।  दोनों ही युवा और पढ़े-लिखे चेहरे इस बार आपस में भिड़ेंगे और देखने वाली बात यह होगी कि आखिर जीत किसे हासिल होगी।


मोदी मैजिक अगर खूब चला तो सुरेश ही शिमला के नरेश बनेंगे और यदि शिमला संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत पड़ते विधानसभा क्षेत्रों के कांग्रेसी विधायक अपने-अपने एरिया से लीड दे गए तो फिर सुतानपुरी को भी सुल्तान बनने से कोई नहीं रोक सकता। यहां लड़ाई मोदी बनाम 13 विधायकों की है। इन 13 विधायकों में भी 5 मंत्री इसी संसदीय क्षेत्र से आते हैं। और सीपीएस व चेयरमैन की लिस्ट लंबी है। यानी यहां सब कुछ मोदी बनाम इन तमाम विधायकों के बीच सब कुछ होगा। हालांकि डॉ. राजीव बिंदल और जयराम ठाकुर का भी इसमें खासा रोल रहने वाला है, मगर अंतत: जीत या तो मोदी जी दिला जाएंगे या फिर कांग्रेस के 13 जीते हुए विधायक।


कांग्रेस हवाला दे रही है कि उनका कैंडिडेट युवा है, पढ़ा-लिखा है और सबसे बड़ी बात एक ऐसे व्यक्तित्व का बेटा है, जो 6 बार शिमला से सांसद रहे हैं। साथ ही कांग्रेसी यह भी हुंकार भर रहे हैं कि 13 विधायक अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों से लीड दिलाकर विनोद को सुल्तान बनाएंगे और सुरेश कश्यप की नाकामयाबियों को जनता के समक्ष रखेंगे। पिछले कल ही सीएम सुक्खू ने सभी को टारगेट भी दे दिए हैं। विनोद सुल्तानपुरी यहां इसलिए भी थोड़ा रिलेक्स हो पाएंगे क्योंकि यहां वह अकेले नहीं होंगे। उनके साथ जीते हुए विधायकों के साथ-साथ प्रदेश के नेतृत्व का साथ होगा।


वहीं भाजपा कह रही है कि सरकार की नाकामियां और मोदी नाम और सुरेश कश्यप का काम बोलता है, जिसके चलते वह बड़े मार्जिन से इस बार चुनाव फिर से अपने नाम करेंगे। लेकिन अंदर खाते भाजपा को भी मालूम है कि यहां मुकाबला कांटे की टक्कर का होने वाला है। पिछली बार धनीराम शांडिल को उन्होंने बड़े मार्जिन से पटखनी दी, लेकिन इस बार चेहरा कोई और होगा और समीकरण भी थोड़े और।


यह देखा गया है कि पिछले 2 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ किया है। चाहे उस समय सरकार स्व. वीरभद्र सिंह की हो या फिर जयराम ठाकुर की। 2014 के चुनावों में हालांकि मार्जिन बहुत ज्यादा नहीं था, लेकिन 2019 में इतिहास बन गया था। 2019 में सरकार भाजपा की ही थी तो भाजपा ने उसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस को नेस्तनाबूत कर दिया था। मगर ध्यान देने वाले समीकरण होंगे 2014 और 2024 के। इन दोनों समय पर कांग्रेस की सरकारें रही या हैं।  
बात 2014 के चुनावों की करें तो शिमला संसदीय क्षेत्र में उस समय कांग्रेस की सरकार में 9 विधायक कांग्रेस के थे और 8 विधायक भाजपा के जीत कर आए थे और एक विधायक स्वतंत्र था।

चौपाल से बलबीर वर्मा या यूं कहें भाजपा का ही कैंडिडेट। यानि उस समय विधानसभा की तस्वीर एकदम बराबर थी। भले ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन जनता ने बराबर की तवज्जो दोनों ही पॉलिटिकल पार्टियों को दी थी। इस बार शिमला संसदीय क्षेत्र में 17 में 13 कांग्रेस के विधायक जीत कर आए हैं और उनमें से 5 को मंत्री भी बनाया गया है, जो कहीं न कहीं बहुत ज्यादा मायने रखता है। फिलहाल अभी तक भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है, जिसमें अभी 19 और 21 का फर्क नजर आता है और ऊंट कभी भी किसी भी तरफ करवट ले सकता है। बाकी बहुत सी चीजें कांग्रेस और भाजपा के चुनावी कैंपेन पर भी निर्भर करेगी।

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