धूमल के सामने एक धर्मसंकट जरूर नजर आता है, पर वह कहते हैं कि वह व्यक्ति नहीं, पार्टी चिह्न को अहमियत देते हैं। हालांकि वह दल बदलने को भारत की राजनीति का सबसे गंदा खेल भी कहकर प्रत्याशियों के व्यवहार से असंतोष जता रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में जिस तरह से दल-बदल की राजनीति हो रही है, उससे पूर्व मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल व्यथित हैं। धूमल कहते हैं कि अगर सुजानपुर में कैप्टन रंजीत राणा ने उनसे पूछा होता तो वह पार्टी बदलने को नहीं कहते। उनकी उंगली पकड़कर आगे बढ़े राजेंद्र राणा ने वर्ष 2017 में बतौर कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा के घोषित मुख्यमंत्री चेहरा प्रेमकुमार धूमल को हराकर सबको चौंकाया था तो आज वही राजेंद्र फिर पार्टी बदलकर भाजपा के हो लिए हैं। अब धूमल के सामने एक धर्मसंकट जरूर नजर आता है, पर वह कहते हैं कि वह व्यक्ति नहीं, पार्टी चिह्न को अहमियत देते हैं। हालांकि वह दल बदलने को भारत की राजनीति का सबसे गंदा खेल भी कहकर प्रत्याशियों के व्यवहार से असंतोष जता रहे हैं। ‘
दल-बदलकर राजेंद्र राणा अब भाजपा से खड़े हैं, आप प्रचार करेंगे?
मैंने जब भी चुनाव लड़ा है तो कमल के चिह्न पर ही लड़ा है। कमल का चुनाव चिह्न जिसके पास रहा है, उसके लिए प्रचार किया है। मैं व्यक्ति विशेष पर ध्यान नहीं देता और मैं पार्टी और चुनाव चिह्न पर ध्यान देता हूं। पार्टी नेतृत्व जिसे चिह्न दे देता है, हम उसी को प्रत्याशी मानते हैं।
कैप्टन रंजीत राणा पिछली बार आपकी सहमति से सुजानपुर से प्रत्याशी थे, क्या भाजपा छोड़ने से पहले आपसे बात की?
मुझसे कोई बात करता तो यही कहता कि पार्टी मत बदलो। दल-बदल भारत की राजनीति का सबसे गंदा खेल है। दल बदलना नहीं चाहिए। निष्ठा के साथ जो जिसमें हो, उसी में रहना चाहिए। विज्ञापन
आप हमीरपुर में हैं और जयराम ठाकुर आजकल मंडी में ही प्रचार में व्यस्त हैं, अन्य जगहों को वक्त कब देंगे?
प्रचार के लिए जहां-जहां आवश्यकता होती है, मैं वहां जाता हूं। सम्मेलन में भी गया था। जहां जरूरत होगी और स्वास्थ्य इजाजत देगा, वहां जाऊंगा। जहां तक जयराम जी की बात है, यह उन्हीं से पूछें तो उचित रहेगा।
क्या हिमाचल पर उपचुनाव थोपे गए हैं, जैसा कि कांग्रेस का भी आरोप है?
जब विधायक अयोग्य घोषित हो जाता है तो खाली स्थान की अधिसूचना चुनाव आयोग को विधानसभा अध्यक्ष की ओर से भेजी जाती है। ऐसे में चुनाव होना स्वाभाविक है। प्रश्न यह है कि खाली स्थान हुआ क्यों, असली जड़ वही है। यही पड़ताल का विषय है। जब परिस्थितियां ऐसी बन ही गईं तो उपचुनाव तो होने ही हैं।विज्ञापन
कांग्रेस के नेता भाजपा और भाजपा के कांग्रेस में जा रहे हैं, इस बदले राजनीतिक परिदृश्य पर क्या कहते हैं?
यह राजनीति का बदला हुआ भी नहीं, गिरता हुआ स्वरूप है। जब गिरावट आना शुरू हो जाती है तो आदमी फिसलता जाता है। मूल्य गिरते जाते हैं। सिद्धांतहीन और मूल्यहीन राजनीति जब होती है तो ऐसा ही होता है। सब कुछ सामने दिख रहा है।
प्रचार में जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, उस पर क्या कहते हैं?
मैं इस बात से दुखी हूं कि राजनीति में प्रचार का स्तर बहुत घटिया होता जा रहा है। लोकतंत्र में एक-दूसरे के प्रति सम्मान रहना चाहिए। आलोचना मुद्दों पर होनी चाहिए, व्यक्तिगत नहीं। स्तरहीन और आधारहीन आलोचना आगे नहीं बढ़ाती है। ऐसा करने वाला स्वयं अपनी और समाज की नजरों में भी गिर जाता है।
अनुराग पांचवीं बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, उन्हें केंद्रीय मंत्री ही देखना चाहते हैं या राज्य की राजनीति में भी?
अनुराग ठाकुर के बारे में हमारे चाहने या न चाहने से कुछ नहीं होगा। ईश्वर जो चाहे, वही होता है। आगे भी भगवान की इच्छा जो होगी, वही होगा। इसके अलावा यहां की जनता जो चाहेगी और हाईकमान जिस तरह का निर्णय लेगा, वही होगा। अनुराग को केंद्र में महत्वपूर्ण पद मिला है, इसके साथ ही पार्टी ने उन्हें सम्मान दिया है। वह वहां पर शानदार सेवा भी कर रहे हैं, जो संतोषजनक है।
इन चुनावों से क्या अपेक्षा है?
सबको लोकतंत्र के पर्व की शुभकामनाएं। ईमानदार और मेहनती उम्मीदवारों को वोट दिए जाने चाहिए, जो प्रदेश की सेवा कर सके। इसके साथ ही देश में स्थायी सरकार बननी चाहिए, ताकि देश सुरक्षित रहे और भारत फिर से विश्व गुरु बने।
चुनाव में प्रदेश पर बढ़ रहा कर्ज एक मुद्दा है, पिछली तमाम सरकारों पर दोषारोपण हो रहा है, क्या कहते हैं?
चौथा और पांचवां वेतन आयोग हमारी सरकार ने लागू किया था। दिसंबर 2007 से लेकर 2012 तक पांच साल में हमने कर्मचारियों का एरियर भी दिया। डीए की किस्तें भी दीं। कर्मचारियों को अंतरिम राहत का ज्यादा पैसा चला गया था, जो बाद में थोड़ा-थोड़ा कटा। पांच साल में 6,672 करोड़ कर्ज लिया था, जो न्यूनतम था। एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से कुछ नहीं होता। आरटीआई से अगर सूचना ली जाए कि किस सरकार ने कितना कर्ज लिया तो सब मालूम हो जाएगा। सारी सच्चाई सामने आ जाएगी।