हिमाचल प्रदेश आर्थिक तंगहाली पर मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू व नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर आमने-सामने आ गए हैं। मंगलवार को विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सदन के बाहर दोनों ने हिचकोले खाती प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार बताया। विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने विपक्ष के आरोपों पर कहा कि हिमाचल में कोई आर्थिक संकट नहीं है। हम आर्थिक संकट को पार कर चुके हैं और अब राजकोषीय अनुशासन लाकर हिमाचल को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में निर्णय लिए जाएंगे। कहा कि वित्तीय कुप्रबंधन पर विपक्ष सदन में चर्चा करे, हम चर्चा के लिए तैयार है। किसी भी नियम के तहत चर्चा करे।
हम जनता को बताना चाहते हैं कि वित्तीय कुप्रबंधन क्यों हुआ? और कैसे डबल इंजन की पूर्व भाजपा सरकार ने जनता के खजाने को लुटा दिया। बिजली-पानी माफ कर दिया। 600 के करीब संस्थान खोल दिए। इन सभी विषयों पर विपक्ष चर्चा का प्रस्ताव लाए, नहीं लाएंगे तो हमारे द्वारा चर्चा लाई जाएगी। हम जनता को जागरूक करना चाहते हैं कि जब कोई नीतिगत फैसले नहीं होते तो उसका प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है। गरीब को निशुल्क पानी-बिजली मिलनी चाहिए, साधन संपन्न को नहीं। जयराम ने जो पांच साल में प्रदेश के खजाने लुटा दिया, उस दृष्टि से चर्चा होनी चाहिए। हमारी सरकार किसी भी नियम के तहत चर्चा के लिए तैयार है।
राजस्व में वृद्धि के लिए कई कदम उठाए
सुक्खू ने कहा कि सरकार ने राजस्व में वृद्धि के लिए कई कदम उठाए हैं। बिजली के बिलों में एकरूपता लाकर इसे कम करेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार रुपये मासिक से अधिक आय वालों से 100 रुपये पानी का बिल लिया जाएगा। शराब के ठेकों की निलामी से राजस्व में इजाफा हुआ है। सरकारी कर्मियों, अधिकारियों के सहयोग से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रहे हैं।
हिमाचल में आर्थिक रूप से गंभीर संकट: जयराम
वहीं, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में यह पहली बार ऐसी परिस्थिति बनी है कि कर्मचारियों को महीने की तीन तारीख बीतने के बाद भी वेतन नहीं मिला है। इसका मतलब सीधा है कि हिमाचल में आर्थिक रूप से गंभीर संकट है। सीएम कभी बोलते हैं संकट है, कभी बोलते है संकट नहीं है। कभी बोलते हैं कि हिमाचल 2027 तक देश का सबसे समृद्ध राज्य बनेगा। यदि प्रदेश सरकार के समक्ष इस तरह की परिस्थिति पर आ गई है कि कर्मचारियों का वेतन देने में असमर्थ है तो इस पूरे विषय को बहुत गंभीरता से सरकार को लेना चाहिए है। जयराम ने कहा कि आर्थिक दृष्टि से हिमाचल लगभग दिवालियापन की कगार पर खड़ा होता दिख रहा है।
विकास कार्य रुके पड़े हैं। ऐसी स्थिति में हमने बीते दिन विधानसभा में नियम-67 के तहत नोटिस दिया था कि सारी कार्यवाही रोककर इस विषय पर चर्चा की जाए। जयराम ने कहा कि केंद्र से मिलने वाली आर्थिक मदद के माध्यम बहुत स्पेसिफिक हैं। केंद्र से राजस्व घाटा ग्रांट मिलती है, उसे रोका नहीं गया है। इसके अलावा वे(मुख्यमंत्री) केंद्र से क्या मदद चाहते हैं, संकट तो प्रदेश का है। मुख्यमंत्री को जिम्मेवारी के साथ इस बात को स्वीकार करना चाहिए। बार-बार केंद्र को कोसना उचित नहीं है। जयराम बोले कि सत्ता को हासिल करने के लिए झूठी गारंटियां दी गईं। जब गारंटियों को लागू करने के लिए आगे बढ़े तो प्रशासनिक संकट आ गया। हिमाचल इस समय बहुत बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है।