राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 99 साल हो रहे हैं. विजयादशमी के दिन ही इसकी स्थापना हुई थी. तब से हर दशहरा पर ये संगठन धूमधाम से पूरे देश में शस्त्रपूजन करता है. ये संघ के बड़े कार्यक्रमों में एक होता है.
दशहरे के दिन ही हुई थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
इस दिन संघ के स्वयंसेवक पूरे रीतिरिवाज से शस्त्रपूजन करते हैं
संघ सालभर में 06 त्योहार मनाता ये उसमें से एक है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) हमेशा दशहरे के दिन विजयादशमी कार्यक्रम में शस्त्रपूजन करता है. ये क्रम तब से चल रहा है, जब से संघ की स्थापना हुई. संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी यानी दशहरा के दिन हुई थी. दशमी पर शस्त्र पूजन का विधान है. इस दौरान संघ के सदस्य हवन में आहुति देकर विधि-विधान से शस्त्रों का पूजन करते हैं. संघ के स्थापना दिवस कार्यक्रम में हर साल ‘शस्त्र पूजन’ खास रहता है.
क्यों किया जाता है ‘शस्त्र पूजन’
दशहरा के मौके पर शस्त्रधारियों के लिए हथियारों के पूजन का विशेष महत्व है. इस दिन शस्त्रों की पूजा घरों और सैन्य संगठनों द्वारा की जाती है. नौ दिनों की उपासना के बाद 10वें दिन विजय कामना के साथ शस्त्रों का पूजन करते हैं. विजयादशमी पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की पूजा के साथ शस्त्र पूजा की परंपरा हिंदू धर्म में लंबे समय से रही है. छत्रपति शिवाजी ने इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न कर भवानी तलवार प्राप्त की थी.
आरएसएस का ‘शस्त्र पूजन’
संघ की तरफ ‘शस्त्र पूजन’ हर साल पूरे विधि विधान से किया जाता है. इस दौरान शस्त्र धारण करना क्यों जरूरी है, की महत्ता से रूबरू कराते हैं. बताते हैं, राक्षसी प्रवृति के लोगों के नाश के लिए शस्त्र धारण जरूरी है. सनातन धर्म के देवी-देवताओं की तरफ से धारण किए गए शस्त्रों का जिक्र करते हुए एकता के साथ ही अस्त्र-शस्त्र धारण करने की हिदायत दी जाती है. ‘शस्त्र पूजन’ में भगवान के चित्रों से सामने ‘शस्त्र’ रखते हैं. दर्शन करने वाले बारी-बारी भगवान के आगे फूल चढ़ाने के साथ ‘शस्त्रों’ पर भी फूल चढ़ाते हैं.