सेब की नई किस्मों की ओर बढ़ा रुझान, गाला और डिलीशियस पहली पसंद

HP Horticulture: Trend towards new apple varieties increased, Gala and Delicious are the first choice

हिमाचल प्रदेश में बागवानों का अब आधुनिक खेती और सेब की नई किस्मों की ओर रुझान बढ़ रहा है। बड़ी संख्या में एचडीपी (हाई डेंसिटी प्लांटेशन) पर आधारित नए बगीचे लगाए जा रहे हैं। सेब की पुरानी किस्मों के स्थान पर बागवान नई किस्मों को तरजीह दे रहे हैं। कम चिलिंग ऑवर की जरूरत, कम जगह में अधिक उत्पादन और तीसरे साल ही फसल जैसी खूबियों के चलते गाला, डिलीशियस और फ्यूजी किस्में सबसे अधिक डिमांड में हैं। इस सीजन में अब तक उद्यान विभाग, वानिकी विश्वविद्यालय नौणी सोलन और पंजीकृत नर्सरियां बागवानों को करीब 12 लाख पौधे उपलब्ध करवा चुकी हैं। उद्यान विभाग के पास तो अभी भी बहुतायत में पौधे उपलब्ध हैं। प्रदेश में मार्च माह तक नई पौध लगाने का काम चलेगा।

जलवायु परिवर्तन के कारण साल दर साल बर्फबारी में कमी के चलते हिमाचल से सेब उत्पादन प्रभावित हो रही है। सेब की परंपरागत किस्म रॉयल को 1200 घंटों से अधिक चिलिंग ऑवर की जरूरत रहती है। बागवान अब अपने बगीचों में कम चिलिंग ऑवर की जरूरत वाली किस्में लगा रहे हैं। मसलन गाला, डिलीशियस और फ्यूजी किस्मों के लिए 500 घंटों की चिलिंग भी पर्याप्त रहती है। कम बर्फबारी के बावजूद पौधों को इतनी चिलिंग मिल जाती है। इसके अलावा इन नई किस्मों के कम जगह में अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं। हिमाचल में कृषि भूमि लगातार कम होती जा रही है, जिसके चलते नई किस्में बेहतर विकल्प साबित हो रही हैं। पौधा छोटा होने के चलते इन किस्मों की देखभाल और रखरखाव भी पुरानी किस्मों के मुकाबले आसान है। पुरानी किस्में जहां 8 से 10 साल बाद फल देती हैं, नई किस्में तीसरे साल से ही फल देना शुरू कर देती है। यह खासियत भी बागवानों को आकर्षित कर रही है। नई किस्मों के फल की गुणवत्ता बेहतरीन है जिसके चलते इन्हें मार्केट में बढि़या कीमत मिल रही है।

इन किस्मों की अधिक मांग
निचली ऊंचाई वाले क्षेत्र – डार्क बेरॉन गाला, डेविल गाला, फेन प्लस गाला
मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्र – सेब की किस्में किंग रॉट, मेमा मास्टर, अर्ली रेडवन, रेड विलोक्स
ऊंचाई वाले क्षेत्र – पिंक लेडी, ग्रेनी स्मिथ, किंग फ्यूजी, सैन फ्यूजी, हैपके

क्या कहते हैं उद्यान निदेशक
बागवानी में बदलाव आ रहा है। आधुनिक बागवानी की ओर बागवान आकर्षित हो रहे हैं। हाई डेंसिटी प्लांटेशन के लिए नई किस्मों के पाैधों की मांग बढ़ रही है। इस साल अब तक विभाग बागवानों को करीब 3.80 लाख पाैधे उपलब्ध करवा चुका है। अभी भी विभाग के पास पाैधे उपलब्ध हैं।– विनय सिंह, निदेशक, उद्यान विभाग

जलवायु परिवर्तन की मार के चलते आधुनिक बागवानी समय की जरूरत है। बागवानों को ऊंचाई, मिट्टी की संरचना और सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर सेब की नई किस्मों का चयन करना चाहिए। सेब उत्पादन पर बढ़ती लागत को देखते हुए विविधता के लिए स्टोन फ्रूट, चेरी, नाशपाती, जापानी फल या ब्लू बैरी की खेती भी अपनाना जरूरी हो गया है।– लोकेंद्र सिंह विष्ट, अध्यक्ष, प्रोग्रेसिव ग्रोवर्स एसोसिएशन

सेब की नई किस्मों के प्रति बागवानों का रुझान बढ़ रहा है। क्लाइमेट चेंज और मार्केट डिमांड को देखते हुए बागवान परंपरागत किस्मों के स्थान पर नई किस्मों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उद्यान विभाग उच्च गुणवत्ता के पौधे रियायती दरों पर बागवानों को उपलब्ध करवा रहा है। अभी भी विभाग के पीसीडीओ में पौधे उपलब्ध हैं। हाई डेंसिटी प्लांटेशन अपनाने के लिए बागवान उत्साहित हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *