मंडी महाशिवरात्रि विश्वभर में प्रसिद्ध है और इसके पीछे एक ऐसी कहानी है, जो शायद ही किसी को पता होगी। मंडी महाशिवरात्रि में दो मंदिरों भूतनाथ मंदिर और माधव राय मंदिर की अहम भूमिका है। माना जाता है कि एक गाय जंगल में जहां वर्तमान मंडी शहर स्थित है, वहां एक पत्थर पर गाय अपना दूध टपकाती थी। इस तथ्य की पुष्टि तत्कालीन शासक अजबर सेन ने की थी। जो मंडी राज्य के पहले महान शासक थे। राजा अजबेर सेन को भगवान शिव ने सपने में दर्शन दिए और पत्थर के नीचे खुदाई करने के आदेश दिए। उन्होंने ऐसा ही किया और वहां एक बड़ा शिवलिंग मिला। उसके बाद उन्होंने 1526 में उस स्थान पर भूतनाथ मंदिर बनवाया।
इसके बाद राजा सूरज सेन, जिनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, बताया जाता है कि उनकी 17 से 18 संतानों की मृत्यु हो गई थी। फिर किसी पंडित के बताने पर उन्होंने मंडी के रक्षक के रूप में भगवान विष्णु के एक रूप को समर्पित माधव राय मंदिर नामक मंदिर का निर्माण कराया। वर्ष 1705 में उनके सुनार भीम द्वारा राधा और कृष्ण की एक सुंदर चांदी की छवि बनाई गई थी, जिसे माधो राय नाम दिया गया और देवता बनाया गया और उसके बाद उन्हें मंडी राज्य के राजा के रूप में नियुक्त किया गया। तब से शासकों ने माधो राय के सेवक और राज्य के संरक्षक के रूप में राज्य की सेवा की।
हालांकि शिवरात्रि से शुरू होने वाले इस त्यौहार को मेले के रूप में विशेष रूप से मनाने का संबंध इसके शासक ईश्वरी सेन से है। 1792 में पंजाब के संसार चंद द्वारा छेड़े गए युद्ध में अपना राज्य खोने के बाद ईश्वरी सेन को 12 साल तक बंदी बनाकर रखा गया था। उन्हें गोरखा आक्रमणकारियों ने रिहा कर दिया था, जिन्होंने कांगड़ा और मंडी राज्यों पर आक्रमण किया था। बाद में गोरखाओं ने ईश्वरी सेन को मंडी राज्य बहाल कर दिया। उनके राज्य की राजधानी मंडी लौटने के अवसर पर उनका स्वागत किया गया। इस अवसर पर राजा ने राज्य के सभी पहाड़ी देवताओं को आमंत्रित किया और एक भव्य उत्सव मनाया और यह दिन शिवरात्रि उत्सव का दिन भी था। तब से हर साल मंडी में शिवरात्रि के दौरान मंडी मेला बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और इसलिए महाशिवरात्रि के मेले में देव माधो राय और भूतनाथ मंदिर का अति महत्व है।
इलाके के सभी देवी-देवता शिवरात्रि के दौरान सबसे पहले देव माधो राय के पास अपनी हाजिरी लगाते हैं और उसके बाद जलेब में शामिल होने के लिए भूतनाथ मंदिर के समीप एकत्रित होते है और जलेब पड्डल मैदान में समाप्त होती है।
मंडी शहर के राज देव माधव राय की पालकी से महोत्सव की शुरुआत होती है। इसी के जरिए भूतनाथ मंदिर में भगवान शिव को न्योता दिया जाता है। महोत्सव में कमरुनाग देवता सबसे पहले आते हैं। इस मेले को शैव, वैष्णव और लोक देवता का संगम माना जाता है।
महाशिवरात्रि के प्रमुख देवता ऋषि कमरू नाग का मंदिर समुद्र तल से 9000 फीट की ऊंचाई पर मंडी शहर से लगभग 63 किमी दूर स्थित एक पौराणिक झील के पास है। कमरू नाग सीधे राज माधव राव मंदिर में माथा टेकने आते हैं और उसके बाद वह अपने निवास स्थान यानी टारना माता मंदिर की ओर चले जाते हैं और पूरे महाशिवरात्रि मेले के दौरान वह यहीं रुकते हैं। शहर के सबसे ऊंचे स्थान पर रहकर ही वह पूरे मेले का आनंद उठाते हैं। मंडी रियासत के इतिहास में दर्ज कमरू नाग बारिश के देवता भी माने जाते हैं।
मंडी शिवरात्रि के दौरान 6 देवियों का भी खास जिक्र है, जो परदे के पीछे ही रहती हैं। जब राजा और अन्य मेले के लिए जाया करते थे तो यह देवियां रानियों के साथ रहा करती थी। सहेलियों की तरह उनसे बातें किया करती थी, तो प्राचीन समय से रानियों की तरह यह देवियां भी मंडी शिवरात्रि के दौरान पर्दों के पीछे ही रहती हैं। गुर का कहना है कि यह देवियां परिवार में सुख-समृद्धि को कायम करती हैं। इस बार मंडी मेले में 6 में से 4 ही देवियां पहुंची हैं।
इस बार कुल्लू के देवता खुड्डी जाहल 100 साल बाद पहुंचे हैं। देवता पिछले 3 सालों से मंडी आना चाहते थे। गुरों के आग्रह पर पिछले 2 साल देवता मंडी नहीं आए, मगर इस बार फिर से देवता ने इच्छा जताई, जिसके चलते देवता शिवरात्रि मंडी में पहुंचे। खुड्डी जाहल देवता को 300 साल पहले राजा ने छत्र दिया था, जो आज भी विद्यमान है।
देव कमरूनाग के मंडी पहुंचने के साथ ही इस महोत्सव की शुरुआत मानी जाती है। यह शिवरात्रि से एक दिन पहले मंडी पहुंचते हैं। शिवरात्रि वाले दिन राज माधव राय मंदिर से बाबा भूतनाथ मंदिर तक शोभायात्रा निकलती है और उपरांत इसके भूतनाथ मंदिर में हवन होता है। मंडी शहर के राज माधव राय की पालकी जब तक नहीं निकलती, तब तक शिवरात्रि महोत्सव की शोभायात्रा भी नहीं चलती। राज माधव राय भगवान विष्णु या कहें कि भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप हैं। शिवरात्रि महोत्सव में शैव, वैष्णव और लोक देवता का संगम होता है। शैव भगवान शिव को कहा गया है, वैष्णव भगवान श्री कृष्ण को और लोक देवता देव कमरूनाग को। इन तीनों की अनुमति के बाद ही मंडी का शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत होती है।