शिमला संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के गृह क्षेत्र में चुनावी माहौल कुछ अलग तरह का दिखा। लोगों से चुनावी माहौल पर पूछा तो नेताओं के काम से कई लोग खुश नजर आए तो कई नाराज भी दिखे।
सोलन से आगे है बड़ोग, फिर कुमारहट्टी। आगे धर्मपुर के लिए एक सड़क जाती है। गाड़ी का एक रास्ता सुल्तानपुर के लिए मुड़ जाता है। यहां पर एक बोर्ड लगा है, जिसमें संकेतक के साथ दर्शाया गया है कि आगे विनोद सुल्तानपुरी का घर और कार्यालय हैं। यहां अभी तक प्रचार का शोर नहीं सुनाई दे रहा। न कोई पोस्टर, न बैनर। ऐसा ही माहौल पिछले दिनों भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी सांसद सुरेश कश्यप के विधानसभा हलके पच्छाद में भी दिखा।
इसके मायने यह निकाले जा रहे हैं कि दोनों दिग्गज अभी बाहर ही प्रचार को वक्त दे रहे हैं। शिमला संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के गृह क्षेत्र में चुनावी माहौल कुछ अलग तरह का दिखा। लोगों से चुनावी माहौल पर पूछा तो नेताओं के काम से कई लोग खुश नजर आए तो कई नाराज भी दिखे। दो बार हारने के बाद विधानसभा चुनाव जीतने वाले विनोद अब करीब डेढ़ साल के अंतराल में लोकसभा के लिए फिर कांग्रेस की उम्मीद हैं।
सुल्तानपुरी के घर और कार्यालय की ओर इशारा करता एक बोर्ड सुल्तानपुर में भी लगा है। आगे संपर्क सड़क में जाते हैं तो विनोद सुल्तानपुरी के पैतृक घर पहुंचते हैं। यहां बाहर कोई नहीं है। चुनाव का कोई भी शोरगुल नहीं। सामने से गांव की एक महिला आती दिखती हैं, उनसे पूछा – विनोद के घर में अभी कोई है। जवाब था-है। सुल्तानपुर गांव के सोहनलाल आते हैं, वह बताते हैं कि मां और पत्नी दोनों घर पर ही हैं। इसी बीच सोहन लाल आगे जोड़ते हैं कि गांव का एक-एक आदमी विनोद के लिए बाहर काम कर रहा है। घर में सब ठीकठाक हो तो ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं होती। धर्मपुर में भी लोग बैठते हैं, वहां भी इनका कार्यालय है। इससे पहले बड़ोग में खराब रास्ता दिखाते हुए दयाराम कहते हैं कि यहां कोई कुछ नहीं कर रहा। रास्तों की हालत खस्ता है।
पति गांव-गांव पैदल जाकर वोट मांगते थे, मैं कभी प्रचार में नहीं गई : सत्या
अमर उजाला से बातचीत में स्व. केडी सुल्तानपुरी की पत्नी और कांग्रेस प्रत्याशी विनोद सुल्तानपुरी की मां सत्या देवी से पूछा कि जब उनके पति सांसद होते थे और आज जब उनके विधायक बेटे विनोद सुल्तानपुरी लोकसभा का पहला चुनाव लड़ रहे हैं, तो तब और अब में उन्होंने क्या फर्क महसूस किया है? वह कहती हैं कि बहुत अंतर है, अब सबकुछ नया-नया है। प्रचार के तौर-तरीके भी बदले हैं।
पहले पैदल चलकर प्रचार करना होता था। आज गाड़ी-मोटर में हो रहा है। उनके पति पैदल गांव-गांव जाकर प्रचार करते थे। क्या वह भी पति के लिए प्रचार करती थीं, इस पर उन्होंने हंसकर जवाब दिया – मैं तो नहीं करती थी। वह कहती हैं कि उनके पति कभी सरपंच बने थे। उसके बाद वह छह बार सांसद बने। बाद में उनका टिकट पहले देकर फिर काट दिया था, वरना वह आगे भी जीतते।
बेटे से क्या उम्मीद है?
इस पर उन्होंने कहा कि पिछले दो विधानसभा चुनाव वह हार गया था। फिर विधायक बना। अब नया चुनाव है। वह बहुत मेहनत कर रहा है। उम्मीद है, वह जीतेगा।